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सूत्रम
॥२१॥
॥२१॥
संपूर्ण मुनिपणुं बतावदा माटे मुत्रो कहे छे,
एत्थंपि जाणे उवादीयमाणा, जे आयारे ण रमंति, आरभमाणा विणयं वयंति, छंदोवणीया अज्झोववण्णा, आरंभसत्ता पकरंति संगं (सू०६०)
प्रस्तुत वायुकायां अने अपि शब्दधी पृथिवी विगेरेमां पण जेओ समाश्रित आरंभ करे छे, ते भो कर्मने बांधे हे. एक जीबनिकायना वधमां, मत्त गयेलो शेष निकायना वधना कर्मथी बंधाय के शा माटे ! एम शिष्ये पूछतां कहे के के हे मुब! एक जीवनिकायनो आरंभ बीजी जीवनिकायना उपमर्दन शिवाय न बनी सके एटला माटे तुं सपजी ले. आ सांभळनारने विचारवा कहा. (भहीं बीजीना अर्थमा पहेली विभक्ति . तेनो आ प्रमाणे अन्वय करवो,) पृथिवी निगेरेना आरंभ करनारने चीनी काया. ना आरंभ करवायी उपादाय मान ने जाण. (अर्थात् तेभोनी चीनकाय मारबानो अभिलाष न होय, उता एककाय इणता, बीजी काय स्वयं हणाइ, जवाथी मारनारने पाप लागे ;) हवे क्या जीवो पृथिवी विगेरेनो आरंभ करतां शेष कायना आरंभना कर्मवी बंधाय थे, ने कहे हे. जेओ आचारमा रमता नथी, एटले परमार्थ जाण्या विना ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप, वीर्ष, मामना पांच मकारना, आचारमा जेओ धीरज न राखे, तेओ अतिने लीधे पृथिवीकाय विगेरेना आरंभी बने छ तेश्रोने चीनी कायना पण पाप बांधनारा जाणवा.
प्रश्न-क्या लोको अचारमा रमता नथी. ?
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