________________
( १४ )
महान् बादशाह ने किया इसका वास्तविक वृत्तान्त ग्रंथ में नहीं मिलता । अलवत्तह विन्सेंट स्मिथ
"
में इस विषय पर थोड़ा सा
I
"
अकबर दी ग्रेट मुगल' नामक पुस्तक प्रकाश डाला हैं जो प्रयाप्त नहीं है । जैन आचार्यों की पहले ही से इतिहास की तरफ रुचि है और उन्होंने कई महापुरुषों के जीवनचरित्रों का, जो कुछ उनको मिल सके, अनेक पुस्तकों में संग्रह कर इतिहास प्रेमियों के लिये बड़ी सामग्री रख छोड़ी है । ऐसे ग्रंथों में 'कुमारपालचरित', 'कुमारपालप्रबन्ध ', ' प्रबन्ध चिन्तामणि ' चतुर्विंशतिप्रबंध', ' विचार श्रेणी', 'हंमीरमदमर्दन ', ' द्वयाश्रयकाव्य ', ' वस्तुपालचरित आदि संस्कृत ग्रंथों से मध्ययुगीन इतिहास की कई बातों की रक्षा हुई हैं। ऐसे ही कई 'रास', 'सज्झाय' आदि पुरानी गुजराती अर्थात् अपभ्रंश भाषा के ग्रंथ लिखकर पुराने गुजराती साहित्य की सेवा के साथ उन्होंने अनेक महापुरुषों के चरित्र अंकित किये हैं । इन आचार्यों ने केवल इतिहास और साहित्य की ही सेवा नहीं की किन्तु लोगों को धर्माचरण में प्रवृत्त कर उनको सदाचारी बनाने का निःस्वार्थ बुद्धि से बड़ा ही यत्न किया है ।
7
किसी प्रकाशित महाशय ने अपने
ऐसे अनेक जैन धर्माचार्यों में हीरविजयसूरि भी एक प्रसिद्ध धर्मप्रचारक हुए। इनकी प्रतिष्ठा अपने समय में ही बहुत बढ़ी और कई राजा महाराजा इनका सम्मान करते रहे और बादशाह अकबर ने भी बड़े आग्रह के साथ इनको गुजरात से अपने दरबार में बुलाकर इनका बड़ा सम्मान किया । जैसे अकबर बादशाह ने मुसलमानों के हिजरी सन् को मिटाकर अपनी गद्दीनशीनी के वर्ष से गिनती लगाकर ' सन् इलाही' नामक नया सन् चलाया और मुसलमानी महीनों के स्थान में ईरानी महीनों और तारीखों के नाम प्रचलित किये वैसे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org