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सम्राट्से परिचय कर देशके अभ्युदय में उन्होंने बहुत बड़ा योग दिया था। और वस्तुतः देखा नाय तो समाज और देशके कल्याणके साथ, साधुओंका-आचार्योंका-धर्मगुरुओंका संसारी मनुष्योंकी अपेक्षा कुछ कम संबंध नहीं हैं । जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरिकी तरह, यदि धर्मगुरु समझें तो उनके सिर गृहस्थोंकी अपेक्षा कई गुणा अधिक उत्तरदायित्व है और अपने उत्तरदायित्वको समझनेवाले धर्मगुरु कदापि यह कहनेका साहस नहीं करेंगे कि-" हमारा देशके साथ और स्वदेशीके साथ क्या संबंध है।" कमसे कम अपने इन जगत्पूज्य जगद्गुरुके जीवनकी प्रत्येक घटना पर ही यदि धर्मगुरु ध्यान दें तो उन्हें बहुत कुछ जानकारी हो सकती है। इस लिए धर्मगुरु हीरविजयसूरिके जीवन पर ध्यान दें, उनके जीवनका अनुकरण करें; जैनसमाज हीरविजयसूरिके माहात्म्यको पहचाने, उनकी महिमा सर्वत्र फैलावे और प्रत्येक गाँवहीमें नहीं बरले प्रत्येक घरमें उनकी वास्तविक जयन्ती मनाई जाय, यही हार्दिक इच्छा प्रकटकर अपना कथन समाप्त करता हूँ : श्रीविजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानमंदिर बेलनगंज, आगरा.
विद्याविजय. द्वि. ज्ये. शु. ५ वीर संवत् २४४९. धर्म संवत् १
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