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उपोद्घात ।
भारतवर्ष की उन्नति के लिये यहाँ के पहले के राजा महाराजाओं, विद्वानों, धर्माचार्यों, वीरपुरुषों एवं देश हितैषी धनाढ्यों के जीवनचरित्र के ऐतिहासिक दृष्टि से लिखे हुए ग्रंथों की बड़ी आवश्यकता है | हिन्दी साहित्य में ऐसे प्रामाणिक ग्रंथ अब तक बहुत ही कम दृष्टिगोचर होते हैं । मुनिराज विद्याविजयजी ने 'सूरीश्वर अने सम्राट् ' नामक जैनाचार्य हीरविजयसूरिजी और बादशाह अकबर के संबंध का एक अपूर्व ग्रंथ गुजराती भाषा में अनुमान तीन वर्ष पूर्व प्रकाशित कर गुर्जरसाहित्य की बड़ी सेवा बजाई थी और उनका ग्रंथ बड़ी खोज और ऐतिहासिक दृष्टि से एवं विद्वत्तापूर्ण लिखा हुआ होने से साक्षर गुर्जरवर्ग में बड़े महत्व का माना गया और तीन वर्ष के भीतर ही उसका दूसरा संस्करण छपवाने की आवश्यकता हुई । ऐसे अमूल्य ग्रंथ का हिंदी अनुवाद आगरे की श्रीविजयधर्मलक्ष्मीज्ञानमंदिर नामक संस्था ने प्रकाशित कर हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि करने का प्रशनीय उद्योग किया है ।
मूलग्रंथ के लेखक मुनिराज विद्याविजयजी ने धार्मिकदृष्टि की अपेक्षा ऐतिहासिकदृष्टि की ओर विशेष ध्यान दिया है और अनेक संस्कृत एवं प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों तथा रासों का पता लगाकर स्थल स्थल पर उन ग्रंथों के अवतरण देकर इस ग्रंथ का महत्त्व और भी बढा दिया हैं | अकबर बादशाह के अनेक जीवनचरित्र अंगरेजी, हिन्दी, गुजराती, बँगला आदि भाषाओं में लिखे गये हैं, परन्तु जैन आचार्यों का प्रभाव उस बादशाह पर कहाँ तक पड़ा और उनके उपदेश से जीवहिंसा को रोकने तथा लोकोपकार का कितना प्रयत्न उक्त
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