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[ चौदह ] उसी राजस्थान में धवल-धोरों से घिरा हुआ बीकानेर शहर हैं, जिसकी अपनी निराली प्राकृतिक शोभा है। "उनाले में तपे तावड़ो लूारा लपका । रातडली इमरत बरसावे नींदा रा गुटका ।।
कठोर जलवायु में पलने के कारण यहां के निवासी स्वभाव से ही बड़े परिश्रमी, सहिष्णु और साहसी होते हैं। बीकानेर राज्य के राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक निर्माण में यहां के जनों का बड़ा योगदान रहा है। मंत्री कर्मचन्द बच्छावत की राज्य और राज्य की जनता के लिए की गई सेवाएं भारतीय इतिहास में सदा अमर रहेगी। उन्होंने अनेक लड़ाइयाँ लड़कर युद्ध के मैदान में विजय श्री प्राप्त की। यहां के जनों ने समय आने पर राज्य और प्रजा की तन, मन, धन से सेवा की है। ये जितने कौशल से धन कमाना जानते हैं उससे कई अधिक गुणा औदार्य से उसका सदुपयोग करना भी उन्हें आता है। "शत हस्तं समाहरेत" और सहस्त्र हस्त सकिरेत' उनका सच्चा जीवन सूत्र रहा है।
इसी बीकानेर के समीपवती एक गांव में, प्रोसवश के लूणियां गौत्र में संवत् १७४६ में श्रीमद् का जन्म हुआ था । आपके पिता का नाम तुलसीदास जी एव माता का नाम धनाबाई था। जब श्रीमद् गर्भ में थे तभी इन भाग्यशाली दम्पति ने खरतरगच्छीय विद्वान वाचक वर्य श्री राजसागर जी के सम्मुख यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि यदि पुत्र हुआ तो वे उसे जैन शासन को सेवा हेतु उन्हें अर्पण कर देंगे।
कहा जाता है कि जब श्रीमद् गर्भ में थे तब धना बाई ने एक स्वप्न देखा था करियण न उस स्वप्न का वर्णन अपने शब्दों में इस प्रकार किया है
शय्या में सुतांथकां किंचित जागृत निंद । भेरु पर्वत उपरे मिली चौसठ इन्द्र ॥ जिन पडिमानो अोछव करे मिलिया देव महान । परावण पर वेसी ने देता सहुने दान ।
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