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सुखमाराध्यः-भर्तृ० २० 3. अजान, समझ की शक्ति । ञ्चिता सत्वरमुत्थितायाः ( रशना )-रघु० ७।१०, से हीन ।
अर्धगुंफित या पिरोया हुआ। सम०-भ्रूः धनुषाअज्ञात (वि.) [न० त०] न जाना हुआ,- अप्रत्याशित, कार या सुन्दर भौओं वाली स्त्री।
अनजान-पातं सलिले ममज्ज-रघु० १६७२। सम० | अज (रुधा० पर० सक० अनिद) [कहीं कहीं-आत्मनेपद] -चर्या, बासः छिप कर रहना (पाण्डवों के विषय में- अनक्ति-अंक्ते, अक्त) 1. लेपना, सानना, रंग पोतना 'अज्ञातवास' प्रसिद्ध है)।
2. स्पष्ट करना, प्रस्तुत करना, चित्रण करना 3. अज्ञान (वि०) [न० ब०] अनजान, बेसमझ,-नं नि० जाना 4. चमकना 5. सम्मानित करना, समारंभ
त०] 1. अनजानपना, 2. विशेष करके आध्यात्मिक करना 6. सजाना; प्रेर०-1 सानना, 2 बोलना, चमकना अज्ञान-अर्थात् अविद्या जिसके वशीभत हो कर मनुष्य उपसर्गों के साय, अधि--उपकरण जुटाना, सुसअपने आप को ब्रह्म से पथक समझता है तथा ज्जित करना; अभि-1. लीपना, सानना 2. कलषित भौतिक संसार की वास्तविकता को मानता है। सम- करना, मलिन करना, अभिवि-प्रकट करना, व्यक्त स्तपदों में 'अज्ञान' का अनुवाद 'अनजाने में' 'अनव- करना; आ- 1. लेप करना 2. सरल बनाना, तैयार धानता में' 'बेखबरी में किया जा सकता है। आच- करना, 3. सम्मानित करना, वि-प्रकट करना, व्यक्त रित, उच्चारित इत्यादि।
करना, जाहिर करना-अकिञ्चनत्वं मखजं व्यक्तिअञ्च (म्वा० उभ० सक० वेट) [अञ्चति-ते, आनञ्च, रघु० ५।१६, शि० २६।
अञ्चितं, अञ्च्यात-अंच्यात, अक्त-अञ्चित] 1. अञ्जनः [अज+ ल्युट (पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम दिशा झुकाना; शिरोऽञ्चित्वा--भट्टि० ९।४० 2. जाना, के) रक्षक हाथी,-नं 1 लीपना पोतना, मिलाना हिलना, झुकाव होना--स्वतन्त्रा कथमञ्चसि-भटि० 2. प्रकट करना, व्यक्त करना 3. काजल या सुरमा जो ४१२२, त्वं चेदञ्चसि लोभम-भामि० ११४६ लालायित आंखों में लगाया जाता है;-विलोचन दक्षिणमञ्जनेन होना 3. पूजा करना, सम्मान करना, आदर, करना, सम्भाव्य--रघु० ७८, असत° उत्त० ४।१९, मच्छ० सुशोभित करना, सम्मानित करना दे० आगे 'अञ्चित' १४३४; (आलं. भी) अज्ञानान्धस्य लोकस्य ज्ञानाञ्जन 4. प्रार्थना-करना, इच्छा करना, 5. बुड़बुड़ाना, अस्पष्ट शलाकया। चक्षरुन्मीलितं येन तस्मै पाणिनये नमः ।। बोलना । प्रेर० या चु० उम०-प्रकट करना, प्रकाशित शिक्षा० ४५, तु०)दारिद्रयं परमांजनम् 4. लेप सौंदर्यकरना,-मुदमञ्चय-गीत०१०। उपसर्गों के साथ वर्धक उबटन 5. मसी 6. आग 7. रात्रि 8. (-नं, -ना) प्रयोग, अप-दूर करना, हटाना, हटजाना; आ- (सा० शा०) व्यंग्यार्थ, व्यंग्यार्थ के प्रकट होने की झुकाना; उत्-1. ऊपर उठना 2. उन्नत होना, प्रकट प्रक्रिया, अनेकार्थक शब्द का प्रयोग जिसका प्रसंगतः होना; उदञ्चनमात्सर्य-० ल०६, उप्-खींचना, विशेष अर्थ होता है-अनेकार्थस्य शब्दस्य वाचकत्वे (जल) ऊपर निकालना; नि-1. झुकाना, इच्छा करना नियन्त्रिते। संयोगाद्यैरवाच्यार्थधीकद्व्यापतिरञ्जनम् ।। 2. कम करना, अपेक्षा करना-न्यञ्चति वयसि प्रथमे- काव्य २, दे० 'व्यंजना' भी। सम-अंभस् ( नपुं० ) भामि० २।४७ परा-मोड़ना, मड़ना--याताश्चेन्न परा- आँख का पानी, शलाका सुरमा लगाने की सलाई। उचन्ति द्विरदानां रदा इव-भामि० १६५; परि-घुमाना, अञ्जना (अज+ल्युट-+-टाप् ) 1. उत्तर भारत की भंवर में डालना, मरोड़ना; वि-खींचना, नीचे को | हथिनी 2. हनुमान् या मारुति की माता । झुकना, फैलना, फैलाना; सम्-भीड़ करना, इकठे | अञ्जलि: [ अञ्ज + अलि 1 1 दोनों खले हाथों को हांकना, इकट्ठे झुकना।
मिलाकर बनाया हुआ कटोरा, करसंपुट, अंजलिभर अञ्चल:-लं [ अञ्च+अलच् ] 1 वस्त्र का छोर या वस्तु-सुपूरो मषिकाञ्जलि:- पंच० ०२५, प्रकीर्णः किनारा, गोट या झालर---क्षीणाञ्चलमिव पीनस्तन
पुष्पाणां हरिचरणयोरञ्जलिरयम-वेणी० १११, अंजलिजघनायाः-उद्भट, 2. कोना या आँख का बाहरी भर फल; इसी प्रकार-जलस्यांजलयो दश---या० कोण-दगञ्चल: पश्यति केवलं मनाक-उद्भट ।
३।१०५, दस अंजलियां अर्थात जल से तर्पण ;-श्रवणाअञ्चित (भू० क० कृ०) [अंच्+क्त) 1 (क) मुड़ा हुआ, जलिपुटपेयम्-वेणी०११४; अंजलि रच,-बंध,-कृया
झुका हुआ, रघु० १८१५८; (ख) धनुषाकार, सुन्दर -आषां, हाथ जोड़कर नमस्कार करना 2. अत एव (जैसे कि भौह); ०अक्षिपक्ष्मन् रघु० ५।७६; छल्ले- सम्मान या नमस्कार का चिह्न, रघु० १११७८; 3 दार, घंघराले (जैसे कि बाल); 2. सम्मानित, अलंकृत, अनाज की माप- कुडव । सम-कर्मन् ( नपुं०) सुशोभित, शोभायमान, सुन्दर; गतेषु लीलाञ्चित- हाथ जोड़ना, आदरयुत नमस्कार;-कारिका मिट्टी विक्रमेषु-कु० १।३४, ताभ्यां गताम्याम्-रघु २।१८, की गुडिया, पुट:-दं दोनों खुले हाथों को जोड़ने से बने ९।२४, 3. सिला हुला, बुना हुआ, व्यवस्थित-अर्धा | कटोरे के आकार का गर्त, हाथ की खुली हथेलियाँ।
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