Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बछड़े को जन्म दिया है -रं [क्रि० वि०] [अचिरेण, | अन (वि०) [न० त०-न जायते नत्र -जन्+ड] अजन्मा, अचिराय, अचिरात् और अचिरस्य भी इसी अर्थ के अनादि,-अजस्य गृहृतो जन्म-रघु० १०१२४;-जः द्योतक है] 1. बहुत देर नहीं हुई, अभी कुछ पहले 2. 1. 'अज' सर्वशक्तिमान् प्रभु का विशेषण, विष्णु, हाल ही में, अभी, 3. शीघ्र, जल्दी, बहुत देर न करके। शिव,ब्रह्मा 2. आत्मा, जीव 3. मेंढा, बकरा 4. मेषराशि सम०- अंशु,- आभा,- धुति,- प्रभा,- भास,- 5. अन्न का एक प्रकार 6. चन्द्रमा, कामदेव । सम० रोचिस (स्त्री०) बिजली-शुविलासचंचला लक्ष्मीः- -अवनी (स्त्री) कटीली काकमाची, घमासा,-अविकं कि०२।१९, भासां तेजसा चानलिप्त:-श० ७७ । छोटा पश,-अश्वं बकरे और घोड़े, एकं बकरे और अचेतन (वि०)[न० ब०] 1 निर्जीव, अबोध,-चेतन नेषु- मेंढे,-गरः अजगर नामक भारी सांग जो, कहते हैं मेष०५; 2. बोधरहित, अज्ञानी। बकरियों को निगल जाता है;-(री) एक पौधे का अच्छ (वि०)[ना +छो+क] स्वच्छ, निर्मल, पारदर्शक, नाम-ाल दे. नी. 'अजागल';-जीवः,-जीविकः विशुद्ध-पुक्ताच्छदन्तच्छविदन्तुरेयम्-उत्त० ६।२७, गडरिया, इसी प्रकार-°पः,-पाल:;-°मार: 1. कसाई, मेष० ५१;-कि रत्नमच्छा मति:-भामि० १११६; 2. एकप्रदेश का नाम (वर्तमान अजमेर),-मीठ: 1. -छ: 1. स्फटिक 2. भाल-तु० भल्ल भी। सम०- अजमेर नामक स्थान का नाम, 2. युधिष्ठिर की उदन् [अच्छोद] (वि०) स्वच्छ जल बाला-दं कादम्बरी उपाधि,-मोदा,-मोविका अजमोद-एक औषध का में वर्णित हिमालय पर्वत पर स्थित एक झील,-भल्लः नाम जिसे मराठी में 'ओंवा' कहते हैं,-शृंगी 'मेंढार्सिगी' रीछ । पौधे का नाम। अच्छ-छा (अव्य०) वै०-की ओर, (कर्म कारक के साथ) अजकव:- [अजं विष्णुं कं ब्रह्माणं वातीति-वा+क] शिव की तरफ। का धनष । अच्छन्दस् (वि.) [न० ब.] 1. उपनीत न होने के कारण अजका-अजिका [स्वार्थे कन् +टाप्] छोटी बकरी, बकरी या शूद्र होने के कारण वेद को न पढ़ने वाला, 2. का बच्चा । छंदरहित रचना। अजकाव:- [अजं विष्णुं कं ब्रह्माणम् अवति इति अब्+ अच्छावाक: [अच्छ+व+घञ्] सोमयाग का ऋत्विक अण्] शिव का धनुष, पिनाक । जो होता का सहायक होता है । अजगवं [अजगो विष्णुस्तं वातीति-वा-+क] शिव का अच्छिद्र (वि.) [न.ब.] छिद्ररहित, अक्षत, निर्दोष, धनुष, पिनाक । दोषरहित-जपच्छिद्रं तपच्छिद्रं यच्छिद्रं श्राद्धकर्मणि, अजगावः [अजगो विष्णुस्तमवतीति-अव+अण] शिव का सर्व भवतु मेऽच्छिद्रं ब्राह्मणानां प्रसादतः;-न० त०] धनुष, पिनाक। निर्दोष कार्य या दशा, दोष का अभाव, ण, बिना अजड (वि.) [न० ब०] जो जड न हो, समझदार। रुके, आदि से अन्त तक। अजन (वि०) [न० ब०] जनशून्य, बियाबान । अच्छिन्न (वि.) [न० त०] 1. अटूट, लगातार चलने | अजनिः (स्त्री०) [अज्+अनि) पथ, मार्ग । वाला, अनवरत 2. जो कटा न हो, अविभक्त, अक्षत, | अजन्मन् (वि०) अनुत्पन्न, 'अजन्मा' प्रभु का विशेषण, अखंडय। (पुं०) परमानन्द, छुटकारा, अपमुक्ति । अच्छोटनम् [न-छुट्+णिच् + ल्युट्] आखेट, शिकार। अजन्य (वि०) [न० त०] उत्पन्न होने के अयोग्य, मानवअच्युत (वि०) [न० त०] 1 अपने स्वरूप से न गिरा हुआ, जाति के प्रतिकूल,-न्यं अपशकुनसूचक अशुभ घटना दृढ़, स्थिर, निर्विकार, अचल 2. अनश्वर, स्थायी, | जैसे कि भूचाल । तः विष्णु, सर्वशक्तिमान प्रभु,--गच्छाम्यच्युतदर्श- | अजपः [न० ब०] वह ब्राह्मण जो सन्ध्योपासना उचित नेन-काव्य०५ (यहां अका भी अर्थ है-दृढ़, जो रूप से नहीं करता है। वासनाओं का शिकार न हो)। सम० अग्रजः अजंभ (वि.) [न० ब०] दांत रहित,-भः 1. मेंढक, बलराम या इन्द्र,-अंगजः,-आत्मजः,-पुत्रः कामदेव, 2. सूर्य 3. बच्चे की वह अवस्था जब उसके दांत नहीं कृष्ण और रुक्मिणी का पुत्र,-आवासः, बासः पीपल निकले हैं। का वृक्ष। अजय (वि०) [न० ब०] जो जीता न जा सके, जो अजू (भ्वा० पर. अक० सेट०-आर्धधातुक लकारों में | हराया न जा सके, नाय;-यः हार, पराजय;-या विकल्प से 'वी' आदेश होता है) [अजति, आजीत, भांग। अजितुम्, अजित-वीत] 1. जाना 2. हांकना, नेतृत्व अजय्य (वि०) [न +जि+यत् न० त०] जो जीता न करना 3. फेंकना (उपसर्गों के साथ इस धातु का | जा सके, श० ६।२९, रघु० १८८। प्रयोग केवल वेद में ही पाया जाता है)। | अजर वि० [न० त०] 1. जिसे कभी बुढ़ापा न आवे, सदा नेननाओं का शिजआस्मजः, यासः पीपल For Private and Personal Use Only

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