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प्रियः अशोकवन प्रिय (वि.) al
रुधिर; -द्वीप : छोटे छ: द्वीपों में से एक;-न्यासः ।। किष्किधा के बानरराज बालि का पूत्र; 2 ऊमिला से उपयक्त मंत्रों के साथ हाथ से शरीर के अंगों उत्पन्न लक्ष्मण का पूत्र-रघु० १५१९०, इसकी को स्पर्श करना; -पालि: (स्त्री०) आलिंगन, राजधानी का नाम अंगदीया था। -पालिका=दे०, अंकपालि-प्रत्यङ्ग छोटे बड़े सब | अङ्गन-णं [अङ्ग् + ल्युट्] 1 टहलने का स्थान, आंगन, अंग; -भूः 1 पुत्र 2 कामदेव; -भङ्गः 1 गात्रो- चौक, सहन, बगड़; गह, गगन व्यापक अन्तरिक्ष पघात, लकवा-'विकल इव भूत्वा स्थास्यामि-श० भुवः केसरवृक्षस्य--माल० १; 2 सवारी 3 जाना, २; 2 अंगड़ाई लेना (जैसा कि सोकर उठते ही मनुष्य चलना आदि। करता है) -मंत्र: एक मंत्र का नाम,-मर्दः 1 जो अङ्गना [प्रशस्तम् अङ्गम् अस्ति यस्याः-अङ्ग+न+टाप् ] अपने स्वामी के शरीर पर मालिश करता है, 2 मालिश 1 स्त्रीमात्र, नप, गज, हरिण° इत्यादि; 2 सुन्दर करने की क्रिया, इसी प्रकार मर्दक: या मदिन, स्त्री 3 (ज्यो०) कन्या राशि। सम-जनः 1 स्त्री -मर्षः गठिया रोग; -यज्ञः,-यागः यज्ञ से संबद्ध जाति 2 स्त्रियां; -प्रिय (वि०) स्त्रियों का प्रिय, गौण क्रिया,-रक्षकः शरीर रक्षक, व्यक्तिगत सेवक, पंच०,३-रक्षणं किसी व्यक्ति की रक्षा, -रक्षणी अङ्गस (पुं०) [अञ्ज+असुन कुत्वम्] पक्षी । कवच, पोशाक - रागः 1 सुगन्धित लेप, शरीर पर | अङ्गार:-रं [अड्ग- आरन् 1 कोयला (जलता हुआ या बुझा सुगंधित उबटन का लेप, सुगन्धित उबटन, -रघु० । हुआ, ठंडा);-उष्णो दहति चाङ्गारःशीतः कृष्णायते १२।२७, ६६० कुमा० ५।११, 2 लेपन क्रिया,- करम् --हि० ११८०;-त्वया स्वहस्तेनाङ्गारा: कर्षिता: विकल (वि.) 1 अपाहज, लकवा मारा हुआ, 2 | -पंच० १ तुमने स्वयं अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारी, मूछित; -विकृतिः (स्त्री०) 1 शरीर में कोई तु० 'अपने लिए स्वयं खाई खोदना' 2 मंगल ग्रह,-रं विकार होना, अवसाद 2 मिरगी का दौरा, मिरगी लाल रंग। सम० -धानिका अंगीठी, कांगड़ी,
-विकारः शारीरिक दोष,-विक्षेपः अंगों का हिलाना, ---पात्री, -शकटी अंगीठी, कांगड़ी; -वल्लरी शारीरिक चेष्टा;-विद्या 1 ज्ञान के साधनभत -वल्ली नाना प्रकार के पौधों का नाम विशेषतः व्याकरण आदि शास्त्र 2 अंगों की चेष्टा या चिन्हों 'गुजा' धुंधची। को देखकर शुभाशुभ कहने की विद्या; बहत्संहिता | अङ्गारकः-कं [अनार+स्वार्थे कन] 1 कोयला 2 मंगल ग्रह का ५१वां अध्याय जिसमें इस विद्या का पूर्ण विवरण -विरुद्धस्य प्रक्षीणस्य बृहस्पते:-मृच्छ० ९।३३; निहित है -विधि: गौण या सहायक अधिनियम जो --°चारः मंगल ग्रह का मार्ग 3 मंगलवार (दिनं, कि मुख्य नियम का सहकारी है; -वीरः मुख्य या वासरः),-कं एक छोटी चिनगारी। सम०----मणिः । प्रधान नायक,--वैकृतं 1 संकेत, इंगित या इशारा 2
मूंगा। सिर हिलाना, आँख झपकना, 3 परिवर्तित शारीरिक
अङ्गारकित (वि०) [ अङ्गारक | इतच् ] झुलसा. हुआ, रूप;-संस्कारः, -संस्क्रिया शरीर को आभूषणों से
भुना हुआ। सुशोभित करना, शारीरिक अलंकरण,--संहतिः
| अङ्गारिः (स्त्री०) [ अंगार-मत्वर्थे ठन्-पृषो० कलोपः ] (स्त्री०) अंगसमष्टि, अंगों का सामंजस्य, शरीर,
कांगड़ी, अंगीठी। देहशक्ति,--संगः शारीरिक संपर्क, मैथन, संभोग; -सेवकः निजी नौकर,-हारः हाव भाव, नृत्य,
अङ्गारिका [अंगार-मत्वर्थे ठन्-कप् च] 1 कांगड़ी 2 गन्ने की -हारिः 1 हावभाव 2 रंग-भूमि; रंग-शाला;-हीन
पोरी 3 किंशुक वृक्ष की कली। (वि०) 1 अपाहिज, विकलांग, 2 विकृत अंगवाला।
अङ्गारिणी | अंगार-इन् । डीप ] 1 छोटी अंगीठी, 2 लता।
अङ्गारित (वि.) [ अङ्गार --इतन् ] झुलसा हुआ, भुना अङ्गकं [अङग-अच्, स्वार्थे कन्] 1. अङ्ग-अकृतमधुरै
हुआ, अधजला -तः-तं पलाश वृक्ष की कली,-ता रम्बाना मे कुतूहलमङ्गकः--उत्त० २।२०, २४. 2.! 1-दे० अङ्कारधानी 2 कली 3 लता। शरीर-शि० ४।६६ ।
अङ्गारीय (वि.) [अङ्गार+छ | कोयला तैयार करने की अङ्गणं-दे० अङ्गनम् ।
सामग्री। अङ्गतिः [ अङ्ग+अति] 1. सवारी, यान (स्त्री० भी), ' अङ्गिका [ अङ्ग+क+टाप् ] चोली, अंगिया। 2 अग्नि 3. ब्रह्मा 4. अग्निहोत्री ब्राह्मण।
अङ्गिन् (वि०) [अङ्ग+इन् ] 1 शारीरिक, देहधारी,अनन्द [ अंगं दायति द्यति वा, दै-दो+क] आभूषण, धर्मार्थकाममोक्षाणामवतार इवाङ्गवान्-रघु० १०१८४,
कंकण जो कोहनी के ऊपर भुजा में पहना जाता है, ३८; 2 गौण अंगों वाला, मुख्य, प्रधान-ये रसस्याबाजबन्द,-तप्तचामीकराङ्गद:-विक्रम० १११४; गिनो धर्माः, एक एव भवेदङ्गी शृङ्गारो वीर एव वासंघट्टयनङ्गदमङ्गदेन-रघु० ६७३;-वः 11 सा०द० ।
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