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आलिंगन-तावद्गाढं वितरसकृदयङपाली प्रसीद-माल। अक्य (वि०) [अक+ण्यत् दागने योग्य, चिह्नित या ८१२; 2. दाई, नर्स; -पाशः अंकगणित में एक | अंकित करने योग्य;-यः एक प्रकार का ढोल या मृदंग। प्रकार की प्रक्रिया जिसमें १-२ आदि संख्याओं के | अल (चु० पर० अक० सेट) [अकयति-अहित] 1. पेट के अदल-बदल से एक विचित्र श्रृंखला सी बन जाती है।
बल सरंकना 2. चिपटना 3. रोकना। --भाज् (वि.) 1. गोद में बैठा हुआ या लिया हुआ
अङ्ग (म्वा० पर० अक० सेट्) [अङ्गति, आनङ्ग, अङ्गितुम्, जैसे कि एक बच्चा 2. सुगम, निकटस्थ, सुलभ-कि०
अङ्गित] जाना, चलना; (चु० पर०)1. चलना, चक्कर ५।५२; ----मुखं (या-आस्यम्) अङ्क का वह
काटना 2. चिह्न लगाना। भाग जहाँ सब अङ्कों का विषय सूचित किया गया हो
(अव्य.) [अङग+अच संबोधक अव्यय, जिसका अङ्कमुख कहलाता है, इसी से बीज और फल का संकेत
'अर्थ है "अच्छा" 'अच्छा, श्रीमान्' 'निस्सन्देह' 'सच' होता है-उदा० माल. १ में कामंदकी और अवलोकिता उस अंश का संकेत करती है जिसका अभिनय
'हाँ (जैसा कि 'अङ्गीकृ'में);-अङ्ग कच्चित्कुशलो तात:
-का० २२१; 'किम्' जोड़ कर इसका अर्थ होता है भृरिवसु और अन्य पात्रों को करना है। इसमें कथावस्तु को कम भी संक्षेप में बतला दिया जाता है;-विद्या
'कितना कम' 'किर्तना अधिक'-तणेन कार्य भवती
श्वराणां किमङ्ग वाहस्तवता नरेण-पंच० ११७१ । संख्या-विज्ञान, अंकगणित ।
कोशकारों ने इसके निम्नांकित अर्थ बताये हैंअवनं [अङक - ल्युट]1. चिह्न, प्रतीक 2. चिह्नित करने की क्रिया 3. चिह्न लगाने के साधन, मुहर लगाना आदि ।
'क्षिप्रे च पुनरर्थे च सङ्गमासूययोस्तथा। हर्षे संबोधने अतिः [अञ्च+अति, कुत्वम्-अञ्चे: को वा-अञ्चतिः
चैव ह्यङ्गशब्दः प्रयुज्यते।' "संस्कृत-रचना-छात्र
निदेशिका' का 8 २४३ भी देखें। गं-1. शरीर अतिर्वा] 1. हवा, 2. अग्नि 3. ब्रह्मा 4. वह ब्राह्मण
2. अंग या शरीर का अवयव-शेषाङ्गनिर्माणजो अग्निहोत्र करता है।
विधौ विधातु:-कुमा० ११३३; 3. (क) किसी संपूर्ण अकुटः [अन+उटच्] ताली, कुंजी।
वस्तु का प्रभाग या विभाग, एक खण्ड या अंश, जैसे अङ्कुरः [अक् + उरच्] 1 अंखुवा, किसलय, कोंपल
सप्ताङ्ग राज्यम्-चतुरङ्ग बलम्, अतः (ख) संपूरक या -दर्भाडकुरेण चरणः क्षतः ---श० २११०; समस्तपद के
सहायक खण्ड, पूरक (ग) अवयव, सारभूत घटक रूप में प्रायः इसका नुकीला' या 'तीक्ष्ण' अर्थ होता
-तदङ्गमयं मघवन् महाऋतोः-रघु० ३।४६; (घ) है-मकरवक्तदंष्ट्राजकुरात्-भ० २।४ नुकीली दाढ़; विशेषणात्मक या गौणभाग, गौण, सहायक या आश्रित (आलं०) कलम, संतान, प्रजा-अनेन कस्यापि कुला.
अंग (जो मुख्य वस्तु का सहायक है), (इसका विप० डाकुरेण-श०७:१९; 2. पानी 3. रुधिर 4. बाल 5.
है 'प्रधान' यो 'अङ्गिन्')-अङ्गी रौद्ररसस्तत्र सर्वेऽङ्गानि रसौली, सूजन ।
रसाः पुनः-सा० द० ५१७ (च) सहायक साधन अकुरित (वि.) [अङकुर-+-इतच्] नवपल्लवित, उत्पन्न,
या युक्ति 4. (व्याक०) शब्द का मूल रूप 5. (क) तं मनसिजेनेव-विक्रम० १११२ मानों काम ने किस नाटकों में पांचों सन्धियों के उपभाग (ख) गौण लय पैदा कर दिये हैं।
लक्षणों से युक्त समस्त शरीर 6. छ: की संख्या के अकुशः [अङ्क+उशच) (लोहे का) काँटा या हांकने
लिए आलंकारिक कथन 7. मन -गाः(पुं० ब०व०) की छड़ी, (आलं.) नियंत्रक, संशोधक, प्रशासक, एक देश का नाम, उस देश के वासी--यह प्रदेश निदेशक, दबाव या रोक-निरङ्कुशाः कवयः; कवि नियं- बंगाल के वर्तमान भागलपुर के आस पास स्थित है। श्रण से मुक्त होते हैं या उन पर कोई बन्धन नहीं सम०-अजित-अङ्गीभावः शरीर के अंगों का होता। सम०-प्रहः पीलवान, अन्वेतुकामोऽवमताकुश- संबंध, गौण अंगों का मुख्य अंग से संबंध या पोष्य ग्रहः --शि० १२।१६ ; ----दुर्धरः दुर्दान्त; -धारिन् अंग का पोषक अंग से संबंध (गौणमुख्यभावः, उप(पु०) हाथीवान।
कार्योपकारकभावश्च); अविश्रान्तजुषामात्मन्यनाङ्गित्वं अकुशित (वि.) [अड्कुश+इतच् अकुश से हांका तु संकरः--का० प्र० १०; (अनुग्राह्यानुग्राहकत्वम्)
-अधीप:--अधीशः अंगों का स्वामी, कर्ण (तु. अङकुशिन् (वि.) [अकुश-+-णिनि] अकुश रखने वाला। राजः, पतिः, °ईश्वरः, अधीश्वरः), -ग्रहः अङ्करः अंखुवा-दे० 'अङ्कुर' ।
ऐंठन;-ज,-जात (वि.) 1 शरीर पर उपजा अडकपः-दे० अङ्कुश ।
हआ, या शरीर में जन्मा हआ, शारीरिक 2 सुन्दर, अकोट:-:-लः [अङ्क + ओट-ठ-ल] पिस्ते का वृक्ष । अलंकृत; -(जः)-जनुस 1 पुत्र 2 शरीर के बाल अश्कोलिका [अङ्क-उल+क+टाप या अङ्क-पालिका (नपुं० भी), 3 प्रेम, काम, प्रेमावेश 4 शराबखोरी, का अपभ्रंश आलिंगन ।
मस्ती 5 एक रोग; - (जा) पुत्री; -(4)
गया।
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