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( १३ ) जवान 2. जो कभी न मुझवे, अनश्वर;-पुराणभजरं ] अजानेय (वि.) [अजेऽपि आनेयः--यथास्थान प्रापणीयःविदुः-रघु० १०.१९-- देवता,-रं परमात्मा। | इति अज-अप-आ+नी+यत्] उत्तम कुल का, अजयं [नत्र ++ यत् न० त०] (अभिहित या अध्याहृत | निर्भय (जैसे घोड़ा)।
'संगतं' के साथ) मित्रता-मगैरजयं जरसोपदिष्टम्- | अजित (वि.) [नन+जि+क्त] 1. जो जीता न जा सके, रघु० १८७।
अजेय, दुर्धर तं पुण्यं""""महः-उत्त० ५।२७ 2. न अजस्त्र (वि०) [ना+जस्+र न० त०] अविछिन्न, अन- जीता हुआ (देश आदि) अनियन्त्रित, अनिरुद्ध;
वरत, लगातार रहने वाला;-दीक्षाप्रयतस्य--रघु० आत्मन, इन्द्रियम्-जिसने अपने मन या इन्द्रियों का ३।४४;-लं (अव्य.) सदा, अनवरत, लगातार- दमन नहीं किया है।-तः विष्णु, शिव, या बुद्ध । तच्च धूनोत्यजस्रम्-उत्त० ४।२६ ।
अजिनं [अज+इनच्] बाघ, सिंह या हाथी आदि, विशेषकर अजहत्स्वार्था [न जहत् स्वार्थोऽत्र-हा+-शत् न० ब०] काले हिरन की रोएँदार खाल जिसके आसन बनते है
लक्षणा शक्ति का एक भेद जिसमें मुख्यार्थ पद-शन्यता या जो पहनने के काम आती है-अथाजिनाषाढघर:के कारण नष्ट नहीं होता; जैसे कुंताः प्रविशंति=कुंत कुमा०५।३०, ६७, कि० ११११५. 2. चमड़े का थैला
धारिणः पुरुषाः, इसे उपादान लक्षणा भी कहते हैं। या धौंकनी। सम०-पत्रा,-पत्री,-पत्रिका चमगादड़, अजहल्लिगं [न जहत लिङ्गं यत्, हा+शत न० ब०]
-योनिः हरिण, कृष्णसार मृग-वासिन् (वि.) मृगसंज्ञा शब्द जिसका लिंग नहीं बदलता चाहे वह
चर्म पहनने वाला,-संधः मृगचर्म का व्यवसाय करने विशेषण की भांति ही क्यों न प्रयुक्त किया जाय
वाला। उदा०-वेदः (अथवा) श्रुतिः प्रमाणम् (प्रमाणः अथवा अजिर (वि०) [अज्+किरन्] शीघ्रगामी, स्फूर्तिवान्; प्रमाणा नहीं)।
-₹ 1. आंगन, अहाता, अखाड़ा; उटजाजिरप्रकीर्णअजा (स्त्री०) [ ना+जन्+ड+टाप् ] 1 (सांख्य | का० ३९; 2. शरीर 3. इन्द्रियगम्य पदार्थ 4. वाय,
दर्शन के मतानुसार) प्रकृति या माया; 2 बकरी । हवा 5. मेंढक,-रा 1. एक नदी का नाम 2. दुर्गा का समालस्तनः बकरियों के गल में लटकने नाम । वाला थन; (आलं०) किसी वस्तु की निरर्थकता अजिह्म (वि.) [न० त०] 1. सीधा 2. सच्चा, खरा, सूचित करने में इसका उपयोग होता है। धर्मार्थ- ईमानदार;-गामिभिः-शि० ११६३, बेलाग और काममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते । स्तनस्येव तस्य खरा;-हम मेंढक । सम०-ग (वि०) सीधा चलने जन्म निरर्थकम् ।। -जीवः-पालक: गडरिया, दे० वाला,-व्रजेद्दिशमजिह्मग:-मनु० ६.३१-17ः तीर। अजजीव आदि।
अजिह्वः न० ब०] मेंढक । अजाजि:--जी (स्त्री०) [अजेन आजः त्यागः यस्याम - | अजीकवं [अज्या शरक्षेपणेन कं ब्रह्माणं वाति प्रीणाति अज+आज+इन् ] सफेद या काला जीरा।
वा---कशिव का धनुष । अजात (वि०) [न० त०] अनुत्पन्न--अजातमतमखेभ्यो अजीगतः [अज्यै गमनाय गतं यस्य-ब० स०] सांप।
मृताजातौ सुतो वरम् --पंच० ९, जो अभी उत्पन्न अजीर्ण (वि.) [न० त०] न पचा हुआ, न सड़ा हुआ, न हुआ हो, पैदा न किया गया हो, अविकसित हो; | -णं अपच । ककुद्, पक्ष इत्यादि । सम० -अरि, ---शत्र अजीणिः (स्त्री०) नत्र +ज+क्तिन] 1 मन्दाग्नि(वि.) जिसका कोई शत्रु न हो, जो किसी का शत्र कैर-जीर्णभयाद् भ्रातर्भोजन परिहीयते-हि० २०५७ 2. न हो; (-रि:-9:) 'युधिष्ठिर' की उपाधियाँ-हंत __ बल, शक्ति, क्षय का अभाव । जातमजातारेः प्रथमेन त्वयारिणा --शिशु० २।१९२; | अजीव (वि.) [न.ब.] निर्जीव, जीव रहित;- [न. न द्वेक्षि यज्जनमतस्त्वमजातशत्रुः -वेणी. ३३१३, त०] सत्ता का अभाव, मृत्यु । शिव तथा दूसरे अनेक देवताओं की उपाधि | अजीवनिः (स्त्री०) [न+जी+अनि] मृत्यु, सत्ता का
-ककुत् - (पुं०) थोड़ी उम्र का बैल जिसका कुब्ब अभाव (अभिशाप के रूप में प्रयुक्त)-अजीवनिस्ते अभी न निकला हो; -व्यंजन (वि०) जिसके दाढ़ी शठ भूयात्-सिद्धा०-अरे दुष्ट ! भगवान् तुम्हें मृत्यु दे, आदि अभिज्ञान चिह्न न हों; -व्यवहारः अवयस्क, भगवान् करे, तुम मर जाओ।
नाबालिग जिसको अभी तक वयस्कता न मिली हो।। अज्मलं 1. ढाल 2. जलता हुआ कोयला। अजानिः (नास्ति जाया पस्य-जायाया निदेश:-न० ब०] / अझ (वि०) [न+जा+कन० त०] 1. न जानने वाला, जिसके स्त्रीन हो, पत्नीहीन, विषुर ।
ज्ञान रहित, अनुभवहीन-अझो भवति वै बाल:-मन अजानिकः [अजेन आनो जीवनं यस्य-ठन] गडरिया, बकरियों २।१५२ 2. अज्ञानी, अनसमझ, मूर्ख, मूढ, जड़ (मनुष्यों का व्यापारी।
और पशुओं के विषय में भी कहा जाता है) अज्ञः
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