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हाथ या भुजा का अगला भाग, हाथी की सुंड का [ पापनाशक;-मर्षण (वि०) विशोधक, पाप को सिरा; कभी २ उंगली या उंगलियों के अर्थ में भी हटाने वाला, ऋग्वेद के मन्त्र जिनका सन्ध्या-प्रार्थना प्रयुक्त होता है। दाहिना हाथ-अथाग्रहस्ते मुकुलीकृता- के समय प्रायः ब्राह्मणों द्वारा पाठ होता है (ऋगगुली कुमा० ५।६३हायन (गः) वर्षका आरम्भ, मं०१० सू० १९०) सर्वेनसामपध्वंसि जप्यं त्रिष्वषममार्गशीर्ष (मंगसिर) महीने का नाम:हारः राजाओं र्षणम्-अमर०,-विषः साँप; --शंसः दुष्ट आदमी द्वारा बाह्मणों को जीवननिर्वाहार्थ दान में दी गई भूमि जैसे चोर;--शंसिन् (वि.) किसी के पाप या अपराध -कस्मिंश्चिदप्रहारे-दश० ८१९ ।
को बतलाने वाला। अग्रतः (क्रि. वि., [अग्रे अग्राद्वा-तसिल] (संबन्धकारक | अधर्म (वि०) [न० ब०] जो गरम न हो, ठंडा, °अंश, के साथ) 1. सामने, के आगे, के ऊपर; आगे 2. की
__ घामन-चन्द्रमा जिसकी किरणें ठण्डी होती है। उपस्थिति में, 3. प्रथम । सम-सरः नेता।
अघोर (वि.) [न० त०] जो भयानक न हो, भीषण न अतिम (वि.) असे भव:--अग्र+डिमच्] 1. प्रथम (क्रम,
हो,-र: शिव या शिव का कोई रूप जिसमें अघोर श्रेणी आदि में); प्रमुख, मुख्य 2. बड़ा, ज्येष्ठ-मः
-घोर हो। सम-पथ:-मार्गः शिव का अनुबड़ा भाई।
यायी,-प्रमाणं भीषण शपथ या अग्नि परीक्षा। मणिय (वि.) [अग्रे भव:--अन+घ] प्रमुख आदि,-यः | अघोष (वि.) [नास्ति घोषो यस्य यत्र वा-न० ब० बड़ा भाई।
ध्वनिहीन, निःशब्द,-पःप्रत्येक वर्ग के प्रथम दो अक्षर, अपीय (वि.) [अग्रेभव:-अन+छ] प्रमुख, सर्वोत्तम श, ष, तथा स। आदि । दे० अग्रिम ।
अक् (भ्वा० आ०) टेढा-मेढा चलना, (चु०उभ०-अङ्कयतियो (कि० वि०) 1. के सामने, पहले (काल और देश ते, अङ्कयितुं, अङ्कित) 1. चिह्नित करना, छाप लगाना
वाचक) 2. की उपस्थिति में, 3. के ऊपर 4. बाद में स्वनामधेयाङ्कित-श० ४ नामांकित --नयनोदबिंदुभिः फलतः एवमग्रे वक्ष्यते, एवमत्रेऽपि द्रष्टव्यम् आदि 5. अङ्कितं स्तनांशुकम्—विक्रम०४७, 2. गिनना, 3. सबसे पहले, पहले 6. औरों से पहले। समाः घब्बा लगाना, कलङ्कित करना-तत्को नाम गुणो भवेनेता,----विषिषुः-प: पहले तीन वर्गों में से कोई एक त्सुगुणिनां यो दुर्जनै कृित:---मत० नी० ५४ 4. पुरुष जो विवाहित स्त्री से विवाह करता है, (पुनर्भू- चलना, इठलाना, जाना। विवाहकारी);-दिधिषः (स्त्री०) एक विवाहित स्त्री अङ्कः (पुं०)[अङ्क-+अच्] 1. गोद (नपुं० भी), अङ्काद्यजिसकी बड़ी बहन अभी अविवाहित है-(ज्येष्ठायां
यावङ्कमुदीरिताशी:-कु०७५; 2.चिह्न, संकेत-अलक्तयद्यनढायां कन्यायामूह्यतेऽनुजा, सा चादिधिषज्ञेया
काकी पदवी ततान-रघु०७/०घब्बा, लांछन, कलङ्क, पूर्वा च दिविषः स्मृता); पतिः अग्रेदिधिष स्त्री का
दाग-इन्दो: किरणेष्विवाङ्क:-कु० ११३,-कट्यां कृताको पति;-वनं-जंगल की सीमा या अन्तिम सिरा;
निर्वास्य:-मनु० ८।२८१; 3. अङ्क, संख्या, ९ की सर (वि०) आगे २ चलने वाला, नेता--मानमहता
संख्या 4. पार्श्व, पक्ष, सान्निध्य, पहुँच,-समुत्सुकेवाङ्कमप्रेसरः केसरी-भर्तृ० २।२९।
मुपैति सिद्धिः-कि० ३।४०-सिंहो जम्बुकमङ्कमागतमपि बम (वि० [अग्रे जात:-अग्र+यत] 1. प्रमुख, सर्वोत्तम, त्यक्त्वा निहन्ति द्विपम् -भर्तृ० नी० ३०; 5. नाटक का
उत्कृष्ट, सर्वोच्च, प्रथम-तदङ्गमयं मघवन् महाकतोः एक खंड 6. कंटिया या मुड़ा हुआ उपकरण 7. नाट्य
-रषु० ३।४६, महिषी १०१६६, अधिकरण के रचना का एक प्रकार, रूपक के दस भेदों में से एक, साथ भी; मनु० ३।१८४, पयः बड़ा भाई।
दे० सा० द०५१९ 8. पंक्ति, मुड़ी हुई पंक्ति, सामाअष्=अंघ-दे० (चु० उभ०) बुरा करना, पाप करना। न्यतः एक मोड़, भुजा में मोड़। सम०-अवतारः मर्ष [अध्+अच्] 1 पाप-अघौधविध्वंसविधौ पटी- जब नाटक के आगामी अङ्क से सातत्य प्रकट करता
यसी:--शि०१८, २६. मर्षण आदि 2. कुकृत्य, हुआ, पूर्वांङ्क के अन्त में-अङ्कसकेतं-किया जाता है अपराध, दोष शि० ४१३७ 3. अपकृत्य, दुर्घटना, उसे अङ्कावतार कहते हैं जैसे कि शकुन्तला का छठा विपत्ति-क्रियादधानां मघवा विधातम्-कि० ३३५२; अङ्क अथवा मालविकाग्निमित्र का दूसरा अङ्क:वे. अनघ 4. अपवित्रता, (अशौच) 5. व्यथा, कष्ट तंत्र संख्या-विज्ञान (अंकगणित या बीजगणित), -चः एक राक्षस का नाम, बक और पूतना का भाई -धारणं-णा (नपुं० स्त्री०) 1. चिह्न लगाना या संकेत जो कंस के यहां मुख्य सेनापति था। सम-असुरः करना 2. आकृति या मनुष्य को आंकने की रीति दे० ऊपर 'अघ', अहः (अहन) अपवित्रता का ---परिवर्तः 1. दूसरी ओर मुड़ना 2. किसी की गोद दिन, अशौच दिन-आयुस् (वि०) गर्हित जीवन में लुढ़कना या प्रेम के हाव-भाव दिखाना (आलिंबिताने वाला;-नाश-नाशन (वि.) परिमार्जक, गन के अवसर पर)-पालि:-पाली (स्त्री०) 1.
विषिष विवाह करता से कोई एक
जिसको बस
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