Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ७ ) कृतिका नक्षत्र; बानं पवित्र अग्नि को रखने का पात्र या स्थान, अग्निहोत्री का घर; धारणं अग्नि को सदा प्रतिष्ठित रखना; -- परिक्रि (ठिक्र) या अग्नि- पूजा ; -- परिच्छदः यज्ञ के सारे उपकरण - मनु० ६॥४, - - परीक्षा ( स्त्री० ) अग्नि द्वारा परीक्षा; पर्वतः ज्वालामुखी पहाड़ पुराणं व्यास प्रणीत १८ पुराणों में से एक; -- प्रतिष्ठा ( स्त्री०) अग्नि की स्थापना, विशेष कर विवाह संस्कार की ; प्रवेशः -- प्रवेशनं अग्नि में उतरना, अपने पति की चिता पर किसी विधवा का सती होना, प्रस्तरः फलीता, चकमक पत्थर; -बाहुः धुआँ भं 1 कृत्तिका 2 सोना; -भु ( नपु० ) 1 जल 2 सोना; भूः अग्नि से उत्पन्न कार्तिकेय; मणिः सूर्यकान्त मणि, फलीता; -- मंथ: -- मंथनं घर्षण या रगड़ द्वारा आग पैदा करना; -मांद्यं पाचनशक्ति का मंद होना, भूख न लगना; मुखः 1 देवता 2 ब्राह्मणमात्र 3 मुंह में आग रखने वाला, जोर से काटने वाला, खटमल का विशेषण - पंच० १ मुखी रसोई घर; रक्षणं पवित्र गार्हपत्य या अग्निहोत्र की अग्नि को प्रतिष्टित रखना; रजः - रजस् ( पु० ) 1 इंद्रगोप नामक एक सिदूरी कीड़ा 2 अग्नि की शक्ति 3 लोक; --लोकः अग्नि का वह संसार जो मेरु शिखर के नीचे स्थित है, --वधू (स्त्री०) स्वाहा, दक्ष की पुत्री और अग्नि की पत्नी, वर्धक (वि०) पौष्टिक वाहः 1 धूआं 2 बकरी; -- वीयं 1 अग्नि की शक्ति 2 सोना - शरणं - शाला - शालं अग्नि का मन्दिर, वह स्थान या घर जहाँ पवित्र अग्नि रक्खी जायरक्षणाय स्थापितts हम् वि० 3; - शिखः 1 दीपक राकेट, 2 अग्निमय बाण, 3 वाणमात्र 4 कुसुम या केसर का पौधा, 5 केसर ; शिख 1 केसर 2 सोना; ष्टुत्, ष्टुभ्, ष्टोम आदि दे० - स्तुत् - स्तुभ् आदि-संस्कारः 1 अग्नि की प्रतिष्ठा 2 चिता पर शव की दाह क्रिया-नाऽस्य कार्योऽग्निसंस्कार:-- मनु० ५।६९, रघु० १२/५६ --सखः -सहायः 1 हवा 2 जंगली कबूतर 3 धुआं; साक्षिक (वि० या क्रि०वि०) अग्नि को साक्षी बनाना अग्नि के सामने पंचबाण मालवि० ४।१२ स्तुत् (पु० ) एक दिन से अधिक चलने वाले यज्ञ का एक भाग स्तोमं (ष्टोमः ) बसन्त में कई दिन तक चलने वाला यज्ञीय अनुष्ठान या दीर्घकालिक संस्कार जो ज्योतिष्टोम का एक आवश्यक अंग है, -होत्रं 1 अग्नि में आहुति देना, 2 होम की अग्नि Art स्थापित रखना और उसमें आहुति देना, होत्रिन् ( वि० ) अग्निहोत्र करने वाला, या वह व्यक्ति जो अग्निहोत्र द्वारा होमाग्नि को सुरक्षित रखता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्निसात् ( अव्य० ) अग्नि की दशा तक, इसका प्रयोग समस्तपद में 'कृ' धातु ( जलाना, भस्म करना) के साथ किया जाता है- 'न चकार शरीरमग्निसात्रघु० ८ ७२ भूजलाया जाना । अग्र ( वि० ) [ अङ्ग + रत् नलोपश्च ] 1 प्रथम, सर्वोपरि, मुख्य, सर्वोत्तम, प्रमुख महिषी मुख्य रानी; 2 अत्यधिक; - 1 ( क ) सर्वोपरि स्थल या उच्चतम बिन्दु (विपo - मूलम्, मध्यम्); (आल ं) तीक्ष्णता, प्रखरता, नासिका - नाक का अग्रभाग, समस्ता एव विद्या जिह्वाग्रेऽभवन् - का० ३४६ -- जिह्वा के अन भाग पर थी, (ख) चोटी, शिखर, सतह – फैलार्स, पर्वत आदि 2 सामने 3 किसी भी प्रकार में सर्वोत्तम 4 लक्ष्य, उद्देश्य 5 आरम्भ 6 आधिक्य, अतिरेक. समस्त पदों में जब यह प्रथम पद के रूप में प्रयुक्त होता है तो इसका अर्थ होता है- 'पूर्वभाग' 'सामने ' 'नोक' आदि; उदा० पादः चरणः । सम० - बनी (णी) कः (कम् ) सैन्यमुख मनु० ७११९३ - आसनं प्रमुख आसन, मान आसन मुद्रा० १।१२ - कर: = अग्रहस्तः -- गः नेता, मार्गदर्शक, सबसे आगे चलने वाला - गण्य ( वि० ) श्रेष्ठ, प्रथम श्रेणीमें रक्खे जाने योग्य; - ज पहले पैदा या उत्पन्न हुआ; – जः अग्रजन्मा, बड़ा भाई - अस्त्येव मन्युर्भरताग्रजे मे - रघु० १४।७३ 2 ब्राह्मण – जा बड़ी बहन, इसी प्रकार 'जात, जातक, जाति । -जन्मन् ( पु० ) 1. पहले जन्मा हुआ, बड़ा भाई 2 ब्राह्मण - दश०१३, जिह्वा जिल्ह्ना की नोक -दानिन् (वि०) पतित ब्राह्मण जो मृतक श्राद्ध में दान लेता है; - दूतः आगे-आगे जाने वाला दूत -- कृष्णाक्रोधाग्रदूतः - वेणी० ११२२, रघु० ६।१२, - नी: ( णीः) प्रमुख नेता - अप्यग्रणी मंन्त्रकृतामृषीणाम् - रघु० ५।४; - पादः पैर का अगला हिस्सा, पैर का अगला पंजा, पूजा आदर या सम्मान का सर्वोच्च या प्रथम चिह्न, पेयं पीने में प्राथमिकता - भागः 1. प्रथम या सर्वोत्तम भाग 2 शेष, शेष भाग 3. नोक, सिरा; - भागिन् ( वि० ) ( शेषभाग ) को पहले प्राप्त करने का अधिकार प्रकट करने वाला; - भू: ज, भूमिः (स्त्री०) महत्त्वाकांक्षा का लक्ष्य या उद्दिष्ट पदार्थ मांसं हृदय का मांस, हृदय-० स चानीतम् - वेणी ० ३ - यायिन् ( वि० ) नेतृत्व करना, सेना के आगे चलना, पुत्रस्य ते रणशिरस्ययमग्रयायी - श० ७/२६, योधिन् ( पु० ) मुख्य वीर, मुख्य योद्धा, संधानी यम द्वारा मनुष्यों के कार्यों का लेखा-जोखा रखने की बहीं; - संध्या ( स्त्री०) प्रभात काल; कर्कन्धूनामुपरि तुहिनं रंजयत्यग्रसंध्या श० ४ ( पाठ० ), — सर = यायिन् नेतृत्व करने वाला - रघु० ९।२३: ५/७१ - हस्तः (पु० ) ( - करः पाणिः ) For Private and Personal Use Only

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