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संघ सदा जयकारजी । मूल नायक उत्तर दिशे पार्श्व स्वयंभू हितकारजी । शान्तिनाथ पूर्व दिशा दक्षिण अभिनंदन धारजी । (शेर) मुनिसुव्रत महाराज पश्चिममें सोहे । भलो० । अब दूजे खण्ड के बीच ऋषभं मन मोहे । अरनाथ प्रभुवीर नर्मि जिन देवा । भलो ० । पूजे इन्द्र नरेन्द्र करे प्रभु सेवा ॥ ( दौड़ ) तीजे खण्ड के मकार । ते हितकर नेमि मुनिसुव्रतें आधार । पूजा करे नरनार २ | चौथे खण्ड पार्श्वसारें । सुपार्श्वनाथे सुखकार । मुनिसुव्रत करपार | शीतलनार्थे का आधार २ । ( मिलत ) चार खण्ड में सोलह प्रतिमा - दोय पासमें ध्यावेगा । ज्ञानी० ॥ ३ ॥ ( मिलत ) विजयवल्लभसूरि अरु मुनिवर यात्रा करने को श्रावे । धर्मशाल का उपदेश दिया, जहां संघ ठहर आनंद पावे । जैवंतराज मुनीम पूरा पार्श्वनाथ पूजे ध्यावे । भैम्बर यहाँ का पन्नालाल प्रभु गुण गावे । काम काज की अच्छी सफाई सराफि दिल में लावे | फिर रामसिंह है पूनमचंद प्रभु पूजे भावे | (छूट) पार्श्व शुभदत्त हरिदत्त सो समुद्र कैशीकुमारजी । श्रीमाल पोरवाल कीना स्वयंप्रभसूरि लो धारजी । रत्नप्रभसूरि थापिया, घोसवंस गोत्र अठारजी । यक्षे कक्कै देवें सिद्धसूरि उपकेश गच्छ आधारजी | (शेर) कोरंट कमला द्विवन्दनिक गच्छ बाजे | कहतां न आवे पार गगन गुण गाजे | अविछिन्न चाले आज परम्परा सारी। जिनके उपकार की
१ तातेड़, बाफणा, करणावट, रांका, पोकरणा, सुरवा, भुरंट, श्रीश्रीमाल, वैदमुहता, संचेती, चोरड़िया, भटेवरा, समदड़िया देसरडा, कुंभट, कोचर, कनौजिया, लघुश्रेष्टि.