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समरसिंह ।
द्रव्य व्यय किया कि जिसकी गिनती भी नहीं लगाई जा सकती। वह नर वीर वही भैंसाशाह है जिन्होंने घृत और तेल के स्रोत प्रवाहित कर सौदे में गुर्जर वासियों को नतमस्तक कर दिया था ।
वि. सं. १२९६ में स्वर्गस्थ स्वनाम धन्य विश्व विख्यात वीर मंत्री वस्तुपाल ने संघपति होकर इस तीर्थकी साढे बारह वार यात्रा की । वस्तुपाल जिस प्रकार धर्मनिष्ट व्यक्ति थे उसी प्रकार अपार लक्ष्मी के स्वामी थे । उन्होनें इस परम पुनीत तीर्थ पर १८ क्रोड़ और ६६ लाख रुपये निम्न लिखित कार्यों में खर्च किथे । धन्य है उनकी माता को जिन्होंने भारतभूमि पर ऐसे ऐसे दानवीर नररत्नों को पैदा किया ।
वस्तुपालने इस तीर्थ पर रंगमण्डप और श्रीपार्श्वनेमी जिन मन्दिर बनवाया । शांब, प्रद्युमन और अंबा आदि शिखर,
क्रमेण पूर्णतां प्राप्तः प्रासादोऽपि स मन्त्रिणः । तत्र द्रव्य प्रमाणं तु वृद्धाः पाहुरिदं पुनः ॥ लक्षत्रयी विरहिता द्रविणस्य कोटीस्तिस्रो । विविच्प किल वाग्भट मन्त्रिराजः ॥ यस्मिन युगादि जिनमन्दिर मुद्दधार । श्रीमानसौ विजयतां गिरिपुण्डरीकः ॥
-वि० सं० १५०३ में पं. सोमधर्म गणि विरचित ' उपदेश सप्तति ' ग्रंथके पत्र नं. ३१ से, जो प्रात्मानंद सभा, भावनगरसे प्रकाशित हुमा है ।
२ उपकेशगच्छ पट्टावली जो जैन साहित्य संशोधन कार्यालय में मुद्रित हो चुकी है देखिये ।