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समरसिंह। कनोजिया, १७ डीडू और १८ लघु श्रेष्ठि । इस प्रकार सब मुख्य गोत्र मिला कर अष्टादेश थे। बाद में इन्हीं मूल गोत्रों की
१ कुलगुरुषों की वंशावलियों से पता मिलता है कि उपरोक्त मूल १८ गोत्रों से कई कारण पा कर प्रत्येक मूल गोत्र से अनेक शाखाएँ प्रशाखाएँ उत्पन्न हुई थीं यह बात उस समय की मूल गोत्रों की उन्नति की द्योतक है । मूलगोत्र যা মহাঝা
संख्या . १ तातेहड
तोडियाणी आदि २ बाफना नाहटा जंघडा बेताला वगेरह ३ कर्णावट वागडिया वगेरह ४ बलहा
रांका वांका आदि ५ मोरख
पोखणादि ६ कुलहट
सुरवा आदि ७ विरहट
भुरंटादि ८ श्री श्रीमाल कोटडिया प्रादि ९ श्रेष्टिगोत्र वैद्य मुहता आदि १. संचेती
ढेलडिया प्रादि ११ अदित्यनाग चोरडिया पारख गुलेच्छा बुचा साव सुखादि १२ भूरिंगोत्र भटेवडा आदि १३ भाद्रगोत्र
समदडिया भाण्डावतादि १४ चिंचट , देसरडा आदि १५ कुम्भट ,, काजलिया मादि १६ डिडूगोत्र कोचर मुहता आदि १७ कनोजिया वटवटा मादि १८ लघुश्रेष्टि वर्धमानादिः . आधुनिक इन शाखा प्रशाखाओं में से कितनी तो मौजूद हैं और कितनी लुप्त