________________
२१२
समर सिंह
कि आपका आयुष्य भी केवल एक महीने का शेष है । अतः मैं उपकेशपुर ( ओसियों) में जाकर स्वयं कक्कसूरि ( प्रबंधकार ) को मुख्य चतुष्किका समाधी में स्थापित करूँगा । आपकी भी 1 इच्छा हो तो वहाँ शीघ्र चलिये | देवनिर्मित वीर भगवान् का वह तीर्थ अति उत्तम है । सब सामग्री को संग लेकर संघ और देसलशाह श्राचार्य श्री सिद्धसूरि सहित चले । किन्तु मार्ग ही में देसलशाह का देहावसान हो गया ।
आचार्यश्री सिद्धसूरिजीने माघ शुक्ला पूर्णिमा को अपने करकमलों से कक्कसूरि को अपने पद पर स्थापित किया । उसी अवसर पर रत्नमुनि को उपाध्याय पद तथा श्रीकुमार और सोमेन्दु इन दो मुनियों को वाचनाचार्य पद अर्पण किया गया । देसलशाह के साहसी पुत्र सहजपालने अठारह कुटुम्बियों सहित वीर भगवान् का स्नात्र कराया । आचार्य आदि मुनिवयों को आहार आदि देकर प्रतिलाभ करते हुए उन्होंने स्वामीवात्सल्य भी किया । यहाँ पर अष्टाह्निकोत्सव सम्पादन कर आचार्यश्रीने फलवृद्धिका ( फलोधी ) की ओर विहार किया । वहाँ पहुंच कर श्री 1 पार्श्वप्रभु को वंदन कर आचार्यश्री संघ सहित विहार करते हुए बापस पत्तनपुर पधारे ।
सिद्धसूरि महाराज की आयुष्य का जब एक मास शेष रहा तो आपश्रीने अपने शिष्यरत्न श्री कक्कसूरि आचार्य को सम्बोधन कर आदेश दिया कि जब मेरे मरने के आठ दिन शेष