Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 283
________________ समरसिंह देवपटखि देवालउ भावइ संघह सरवो सरु पूरावह ___अपूरवपरि जहिं एक हुई। वहिं आवह सोमेसरबत्तो गउरवकारणि गरुड पहतो भापणि राणउ मृधराजो ॥२॥ पान फूल कापड बहु दीजई लूणसमउं कपूर गणीजइ जबाधिहिं सिरु लिंपियए । ताल तिविल तरविरियां वाजई ठामि ठामि थाकणा करीजई पगि पगि पाउल पेषण ए ॥ ३ ॥ माणुस माणुसि हियउं दलिजइ घोडे वाहिणिगाह करीजइ हयगय सूझइ नवि जणह । दरिसणसउं देवालउ चाइ जिणसासणु जगि रंगिहिं मन्हा ____ जगतिहिं भाव्या सिव वणि ॥ ४ ॥ देवसोमेसरदरिसणु करेवी कवाडिवारि जलनिहिं जोएवी प्रियमेलइ संघु ऊतरिउ । पहुचंदप्पहपय पणमेवी कुसुमकरंडे पूज रएवी जिणभुवणे उच्छवु कियउ ॥ ५ ॥ सिवदेउलि महाधज दीधी सेले पंचे वनसमिद्धी अपूरवु उच्छवु कारविउ । जिनवरधरमि प्रभावन कीधी जयतपताका रवितलि बद्धी दीनु पयाणउं दीवभणी । कोडिनारिनिवासणदेवी अंबिक अंबारामि नमेवी दीवि वेलाउलि प्रावियउ ए ॥ ६॥

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