Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 281
________________ समरसिंह । मोलीयनंदणु भलइ महोत्सवि आविउ समरु आवासि गनि । तेरइकहत्तरइ तीरथउद्धारु यउ नंदउ जाव रविससि गयणि ॥९॥ नवमी भाषा संघवाछल करी चीरि भले मान्हंतडे पूजिय दरिसण पाय । सुणि सुंदरे पूजिय दरिसण पाय । सोरठदेस संघु संचरिउ मा० चउंडे रयणि विहाइ ॥ १॥ आदिभक्तु अमरेलीयह मान्हं० प्राविउ देसलजाउ । अलवेसरु अल जवि मिलए मान्हं० मंडलिकु सोरठराउ ॥२॥ ठामि ठामि उच्छव हुअइ मान्हं गढि जूनइ संपत्तु । महिपालदेउ राउनु आवए मान्हं० सामुहउ संघअणुरतु ॥३॥ महिषु समरु बिउ मिलिय सोहई मान्ह ० इंदु किरि अनइ गोविंदु तेजि अगंजिउ तेजलपुरे मा० पूरिउ संघाणंदु । सुणि ॥४॥ वउणथलीचेत्रप्रवाडि करे मान्हं० तलहटी य गढमाहि । ऊजिलऊपरि चालिया ए मान्हं० चउविहसंघहमाहि । सुणि । दामोदरु हरि पंचमउ मान्हं० कालमेघो क्षेत्रपालु । सुणि । सुवनरेहा नदी तहिं बहए माल्हं० तरुवरतणउं झमालु ॥ ५ ॥ पाज चडंता धामियह मा० ऋमि कमि सुकृत विलसति । सुणि। ऊची य चडियए गिरिकडणि मा० नीची य गति षोडंति ॥६॥ पामिउ जादवरायभुवणु मा० त्रिनि प्रदक्षिण देह । सिवदेविसुतु भेटिउ करिउ मा० ऊतरिया मढमाहि । सुणि ।

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