Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar
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समरा रास.
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एकादशी भाषा. संघु रयणायरतीरि गहगहए गुहिरगंभीरगुणि । प्राविउ दीवनरिंदु सामुहउ ए संघपतिसबदु सुणि ॥ १॥ हरषिउ हरपालु चीति पहुतउ ए संघु मोलविकरे । पमणई दीवह नारि संघह ए जोपण ऊतावली ए । माउला वाहिन वाहि वेगुलइ ए चलावि प्रिय बेडुली ए ॥२॥ किसउ सुपुत्रपुरिषु जोइउ ए नयणुलो सफल करउ । निक्छणा नेत्रि करेसु ऊतारिसू ए कपूरि ऊआरणा ए । बेडीय बेडीय जोडि बलियऊ ए कीधउं बंधियारो ॥३॥ लेउ देवालउमाहि बइठउ ए संघपति संघसहिउ । लहरि लागई भागासि प्रवहणु ए जाइ विमान जिम । बलवटनाटक जोइ नवरंग ए रास लउडारस ए ॥ ४॥ . निरुपमु होइ प्रवेसु दीसई ए रुवडला धवलहर । विहां अच्छइ कुमरविहारु रुपडऊ ए रुअडुला जिणभुवण । तीर्थकर तीह वंदेवि वंदिऊ ए सयंभू आदिजिणु । दीठउ वेणिवच्छराजमंदिरु ए मेदनीउरि धरिउ । अपूरवु पेषिउ संघु उत्तारिऊ ए पहली तडि समुदला ए ॥ ५ ॥
द्वादशी भाषा प्रजाहरवरतीरथिहि पणमिउ पासजिणिंदो। पूज प्रभावन तहिं करहिं । अघिउ ए अजिउ ए अजिउ सफल सुछंदो ॥१॥

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