Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 282
________________ समरा रास. ૨૯ कलस भरेविणु गयंदमए मा० नेमिहिं न्हवणु करेइ । पूज महाधज देउ करिउ मा० छत्र चमर मेन्हेइ ॥ ७॥ अंबाई अवलोयणसिहरे मा० सांबिपज्जूनि चडंति । सुणि । सहसारामु मनोहरु ए मा० विहसिय सवि वणराइ । सुणि । कोइलसादु सुहावणउ ए मा० निसुणियह भमरझंकारु । सुणि० ० नेमिकुमरतपोवनु ए मा० दुइ जिय ठाउं न लहंति । सुणि । इसइ तीरथि तिहुयणदुलभे मा० निसिदिनु दानु दियंति ॥९॥ समुदविजयरायकुलतिलय मा० वीनतडी अवधारि। सुणि । भारतीमिसि भवियण भणइंमा० चतुगतिफेरडउ वारि। सुणि०१० जइ जगु एक मुहु जोइयए मा० त्रिपति न पामियइ तोइ । सुणि। सामलधीर तउंसार करे मा० वलि वलि दरिसणु देजि। सुणि०११ रलीयरेवयगिरि ऊतरिउ ए मा० समरडो पुरुषप्रधानु। . घोडउ सीकिरि सांकलिय मा० राउलु दियइ बहुमानु ।सुणि० १२ दशमी भाषा रितु अवतरिउ तहि जि वसंतो सुरहिकुसुमपरिमल पूरंतो समरह वाजिय विजयढक । सागुसेलुसनइसच्छाया केसयकुडयकयंबनिकाया संघसेनु गिरिमाहइ वहए। बालीय पूछई तरुवरनाम वाटइ आवई नव नव गाम नयनीझरणरमाउलई ॥१॥

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