Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 287
________________ ( २५०) जैन साहित्यका नवीन प्रभाकर है जैन जाति महोदय-( प्रथमखण्ड ) [लेखक-मुनिवर्यश्री ज्ञानसुन्दरजी महारान ] जिस पुस्तकके लिये सारी जैन समाज टकटकी लगाए बैठी थी. जिसके लिये लोग दस वरसोंसे प्रतीक्षा कर रहे थे उस ग्रंथका प्रथम खण्ड बड़ी सजधज के साथ छपकर आज तैयार है। ____ इस ग्रंथमें भगवान महावीरसे ४०० बर्ष का इतिहास बड़ी खोज और परिश्रम के साथ लिखा गया है इसमें पूर्व बंगाल, कलिंग, मगध, महाराष्ट्र, नेपाल, मरुधर, मालवा, सिन्ध, कच्छ, पञ्जाब बगेरहका इतिहास तथा महाजन संघ-ओसवाल, पोरवाल और श्रीमाल मादि जातियोंकी उत्पति व वृद्धिका सांगोपांग वर्णन किया गया है। इसके अलावा महाजन संघ के दानीमानी नररत्नोंकी वीरता, उदारता का सचा इतिहास इसमें विस्तारसें लिखा गया है । ___ इस विषयपर इतनी बड़ी पुस्तक ऐसी सरलभाषामें पहले प्रकाशित नहीं हुई। पुस्तकको पढ़ना शुरु करनेके बाद आपका जी पुस्तक छोड़ना नहीं चाहेगा | चित्र इतने अधिक संख्यामें बढ़िया मार्ट पेपरपर दिये गये है कि आपका चित्त चित्र देखकर अति प्रसन्न हो जावेगा । पृष्टसंख्या १००० से अधिक है। दो तिरंगे चित्र तो निहायत बढ़िया हैं ४१ चित्र ईकरंगे हैं । पुस्तककी जिल्द रेशमी है। ऐसे बड़े ग्रंथका मूल्य दस रुपये रखना चाहिये था परन्तु प्रचार की गरजसे सिर्फ ४) चार रुपया रखा गया है टपाल खर्च दसाने | अभी आर्डर लिखदीजिये क्योंकि पुस्तकें सिलकमें बहुत थोड़ी रही है मोर मांग बढ़ रही है। दूसरा संस्करण निकलना बहुत मुश्किल है।

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