Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar
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परिशिष्ट सं. २
वि० सं० १३७१ में निवृति गच्छीय आम्रदेवसूरि विरचित
समरारासु
पहिलउ पणमिउ देव आदीसरु से चुजसिहरे |
अनु अरिहंत सब्वे वि आराहउं बहुभत्तिभरे ॥ १ ॥ तउ सरसति सुमरेवि सारयस सहरनिम्मलीय । जसु पयकमलपसाय मूरुषु माणइ मन रलिय ॥ २ ॥ संघपति देसलपूत्रु भणिसु चरिउ समरातणउ ए । धम्मिय रोलु निवारि निसुणउ श्रवणि सुहावउ ए ॥ ३ ॥ भरह सगर दुइ भूप चक्रवति त हुअ अतुलबल । पंडव हविप्रचंड तीरथु उधर अतिसबल || ४॥ जावडतणउ संजोगु हुअउं सु दूसभ तव उदए । समइ भलेरइ सोइ मंत्रि बाहडदेउ ऊपजए || ५ ॥ हिव पुण नवी य ज वात जिरी दीहाडह दोहिलए । खत्तिय खग्गु न लिंति साहसियह साहसु गलए || ६ ||
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- तिणि दिगि दिनु दिखाउ समरसीहि जियधम्मवारी ।
तसु गुण करउं उद्योउ जिम अंधारह फटिकमणि ॥ ७ ॥ सारा अमियतणीय जिणि वहावी मरुमंडलिहिं । किउ कृतजुग अवतार कलिजुग जीतउ बाहुबले ॥ ८ ॥

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