Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 273
________________ २३६ समरसिंह तहिं अछइ भूपतिहिं भुवण सतखणिहि पसत्थो । विश्वकर्मा विज्ञानि करिउ धोइउ नियहत्थो ॥ ६ ॥ प्रमियसरोवरु सहसलिंगु इकु धरणिहि कुंडलु । कित्तिषभु किरि अवररेसि मागइ आखंडलु ॥ ७ ॥ अज वि दीसह जत्थ धम्मु कालिकालि अगंजिउ । भाचारिहिं इह नयरतणइ सचराचरु रंजिउ ।। ८॥ पातसाहि सुरताणभीवु तहिं राजु करेई । अलपखानु हींदअह लोय घणु मानु जु देई ॥ ६ ॥ साहु रायदेसलह पूतु तसु सेवइ पाय । कला करी रंजविउ खानु बहु देइ पसाय ॥ १०॥ । मीरि मलिक मानियइ समरु समरथु पभणीजइ । परउवयारियमाहि लीह जसु पहिली य दीजह ॥११॥ जेठमहोदरि सहजपालि निज प्रगटिउ सहजू । दक्षणमंडलि देवगिरिहि किउ धम्मह वणिजू ॥ १२ ॥ चउवीसजिणालय जिणु ठविउ सिरिपासजिणिंदो। धम्मधुरंधरु रोपियउ धर धरमह कंदो ॥ १३ ॥ साहणु रहियउ षंभनयरि सागरगंभीरे । पुष्वपुरिसकीरितितरंडु पूरइ परतीरे ॥ १४ ॥ तृतीयभाषा निसुणऊ ए ममइप्रभावि तीरथरायह गंजणउ ए। भवियह ए करुणारावि नीठुरमनु मोहि पडिउ ए ।

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