Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 272
________________ समरारास । २३५ उवएससि वेसटह कुलि सरिततणउ अवतारु त । वयरागरि कउतिगु किसउ ए नही य ज रतनह पारु त !! पुन्नपुरुषु ऊपन्नु तहिं ललषणु गुणिहि गंभीरु त । जणाणंदणु नंदणु तमो आजड्ड जिणधबधीरु त !! गोत्रउदयकरु अवधारउ ए त पुत्रु गो पनुमाहु त । तसु गहिणि गुण जत भली य बाराहद मियानाहु न । १० ॥ संघपति आसधरू देसलु लूणउ लिखि जन्म्या मारि त । रतनसिरि भोली लाच्छि भणउं तीहरण य घरनारित : ११॥ देसलघरि च्छी य निसुगि भोली भोलिमसार त । दानि सीलि लूणाघराणि लाछि नली सुविचार ।। १२ द्वितीय भावः रतनकुषि कुलि निम्मली भोजीपुत्तु जावा सहजउ साहणु समर सीहु बहुनिटि भाया ।। १ ।। लहूअलगइ सुविचारचतुर सुविवेक सुजाण । रत्नपरीक्षा रंजवइ राय अनु राण ।। २ ।। तउ देसल नियकुलपईव ए पुत्र बन्न । रूपवंत अनु सीलवंत परिणाविध कन्न ।। ३ ।। गोसलसुति आवासु कियउ अहिलपुर नवरे । पुत्र लहइ जिम रयणवाहि नर समुद्रह लहरे ॥ ४.. चउरासी जिणि चउहटा वरवसहि विहार । मढ मंदिर उत्तंग चंग अनु पोलि पगार ।। ५ :

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