Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 261
________________ २२४ समरसिंहः श्री सिद्धगिरि की प्रतिष्टा के समय भिन्न भिन्न गच्छों के आचार्यों का वर्णन पाया है। इस समबन्ध में कतिपय ऐतिहासिक प्रमाणों का यहाँ उल्लेख कर देना हमारे उपर्युक्त लेख को - सिद्ध करने में विशेष पुष्टिकारक होगा । अधिक कीर्ति को सम्पादित की थी क्योंकि भरत और सागर के समय में तो सारा वातावरण पूर्णतया अनुकूल था ही। बरन् ऐसे विषम काल में उद्धार के कार्य योग्यतापूर्ण सम्पादित कर लेना कोई साधारण युक्ति कार्य का नहीं था । समरसिंहने प्रतिज्ञापूर्ण इस कार्य को कर दिखाया यह समरसिंह की असाधारण योग्यता का स्पष्ट प्रमाण है। इतना ही नहीं वरन् योगनीपीठ ( देहली ) के ऊपर बादशाह महम्मूद की अनुचित सत्ता के कारण पाण्डू देश का अधिपति विवश हो कर कुचेले जा रहा था । हमारे दयादवित चरितनायकने उसे इस दुःख से उन्मुक्त किया। इस से समरसिंह की कीर्ति बहुत फैली । इसी प्रकार के विविध गुणों के आगार समरसिंह की पूर्ण योग्यता को सम्यक् प्रकार से प्रकट करना इस इस्पात की लेखनी की शक्ति के परे की बात है। प्रशस्ति के १३ वें से १७ वें पद्यों में साधु समरसिंह के पुत्ररत्नों का परिचय करवाते हुए यह बतलाने का प्रयत्न किया गया है कि चरितनायक की धर्मपत्नी समरसी के सुरत्न कुक्षी से छ पुत्ररत्न उत्पन्न हुए जिन में प्रौढ पुत्र का नाम साल्हशाह । यह इनका जेष्ठ पुत्र था । जिसने विश्व में अने. कानेक चोखे और अनोखे काम करके भरपूर ख्याति उपार्जित की । इस से इन के पिता समरसिंह का यश भी संसार में स्थायी तथा परिवद्धित हुआ। अतः साल्हशाह यदि चतुर, दक्ष और श्लाघ्य कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । दूसरे पुत्र का नाम सत्यशाह था जिसने देवगुरु धर्म की उत्कृष्ट भक्ति

Loading...

Page Navigation
1 ... 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294