Book Title: Samar Sinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 255
________________ समरसिंह 1 १३६३ के प्रबंध श्रीविमलाचल मंडन श्री आदीश्वर जिन के उद्धारक श्रीसमरसिंह के जीवन वृतान्त का इतना पता लगने का श्रेय श्रीककसूरीश्वर को है । जिन के बनाए हुए वि. सं. से समरसिंह के जीवनपर इतना प्रकाश डाला जा सका है । श्रीपुंडरीकगिरि के मुकुटरूप तीर्थनाथ की संस्थापना विधिविधान पूर्वक करानेवाले आचार्य श्रीगुरु चक्रवर्ती श्रीसिद्धसूरि थे जिन के सुयोग्य शिष्यरत्न श्रीकक्कसूरिजीने उपरोक्त प्रबंध कंजरोटपुर में उपरोक्त संवत् में लिखा था । आत्महितार्थी मुनिकलश साधुने भी इस ग्रंथ के लिखने में सहायता दी थी । २१८ बड़े खेद का विषय है कि हमारे चरितनायकजीद्वारा स्थापित हुए आदीश्वर के बिंब को भी कालक्रम में दुष्ट म्लेच्छोंने खंडित कर दिया था । अतः वि. सं. १९८७ में राजकोठारी कुलदिवाकर श्री कर्माशाहने तीर्थोद्धार करा आचार्य श्रीविद्यामंडनसूरि द्वारा आदीश्वर प्रभु की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई थी । यदि पाठकों ने इस चरित को अपनाया तो श्रीकर्माशाह का जीवन भी शीघ्र ही आप की सेवा में उपस्थित करने का प्रयत्न करूँगा । पात्रे त्यागी गुणे रागी भोगी परिजनै सह । शास्त्रे योद्धा रणे योद्धा पुरुषः पंचलचणः ॥

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