________________
२१०
समरसिंह। बंदना करने लगे। हमारे चरितनायकने कृतज्ञता ज्ञापन करते हुए सब को ताम्बूल वन मादि भेंट किये । बन्दीजनों, गवैयों, ब्राह्मणों और याचकों को मुंहमांगा द्रव्य दिया । सहजपालने तथा अन्य पुत्रोंने अपने पिता के चरण दूध से धोए । तीसरे रोष देव भोज दिया गया । उस भोज में नगर के ५००० व्याक सम्मिलित हुए । इस तीर्थयात्रा में सब मिला कर २७,७०,००० सत्ताईस लाख सत्तर हजार द्रव्य व्यय हुआ ।
गोत्रद्धा यथाशक्ति, संमान्यां बहुमानतः । विधेया तीर्थयात्रा च, प्रतिवर्ष विवेकिना ।।
१ सप्तविंशतिलक्षाणि सहस्राणि च सप्ततिः । तीर्थोद्धारे व्ययति स्म देसल संबनायकः ॥ ........
-नाभिनंदनोद्धार प्रबंध प्रस्ताव ५श्लोक ९५०