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घेष्टिगोत्र और समरसिंह।
अल्प व्यसक कन्या के शरीर में प्रवेश कर लिया। तदनुरूप होकर देवीने आचार्यश्री को वंदना की। आचार्यश्रीने अपने मनोवांछित प्रश्नों को पूछकर देवी से इष्ट उत्तर प्राप्त किये । इस सुअवसर का उपयोग करने के हेतु आशाधरने आचार्यश्री के समक्ष यह इच्छा प्रकट की “ वह दिन कब आवेगा जब मैं विशेष लक्ष्मीपात्र होऊँगा ? कृपया यह बात देवी से पूछ कर मुझे बताइये। मैं आपका इसके लिये बड़ा आभार मानूंगा।" देवी जो पास में खड़ी हुई यह बात सुन रही थी बोली, "आशाधर को थोड़े ही समय के पश्चात् दक्षिण दिशा में बहुत द्रव्य प्राप्त होगा और मैं आशा करती हूँ कि वह अपने प्रण को भी अवश्य निभावेगा।" इतना कह कर देवी तो अन्तधान हो गई। आचार्यप्रवरने पाप और दारिद्र को नष्ट करनेवाला महा मांगलिक वासक्षेप
आशाधरके सर पर डाला । वह जब दक्षिण दिशाकी ओर व्यापारार्थ गया तो असीम लक्ष्मी उपार्जन करके लाया । तब उसने विना विलम्ब आचार्यश्री के आदेशानुसार सातों क्षेत्रों में बहुत सा धन व्यय किया । द्रव्य के सद्व्य से उसने सहज ही में अक्षय पुण्य उपार्जन कर लिया ।
आशाधरने जब देखा कि आचार्य श्री की अब वृद्धावस्था है और इनके जीते जी किसी योग्य मुनि को निकट भविष्य में सूरिपद मिलेगा ही अतः वह आचार्यश्री के पास जाकर कहने लगा कि आप अपने पद पर किसी योग्य मुनिको चुनिये और उन्हें सूरिपद प्रदान करियेगा ! मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि उस अवसर