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प्रतिष्टा ।
देख कर कहा कि बन्धुवर, निभा लेना " | भाइयों की ही मन प्रसन्न हुए कि इस अवसर पर सोने में सुगंध वाला कार्य हुआ ।
खंभात से आए हुए संघ के साथ बहुत से आचार्य भी थे । हमारे चरित नायकने उनका विधि पूर्वक वंदन किया । इस के अतिरिक्त खंभात से लब्ध प्रतिष्टित प्रसिद्ध श्रावक भी साथ थे जिन की शुभ नामावली इस प्रकार है:- पातक मंत्री का भाई मं. सांगण, वंशपरम्परागत संघपतित्व प्राप्त करनेवाला सं. लाला, भावसार सं. सिंहभट, सारंगशाह, मालो श्रावक, मंत्रीश्वर वस्तुपाल का वंशज मंत्री बीजल, मदन, मोल्दाक और रत्नसिंह आदि अनेक श्रावक खंभात के संघ सहित प्रसन्नता पूर्वक पधारे थे । हमारे चरित नायकने उपरोक्त साधर्मियों का स्वागत करने में किसी भी प्रकार की कोरकसर नहीं रखी । तत्पश्चात् युगल बन्धुओंोंने (सहजपाल और साह शाह) आकर संघपति देसलशाह के चरणों को छूकर भक्तिपूर्वक वंदन किया । देसलशाह अपने दोनों पुत्रों के इस प्रकार संघ सहित आकर मिलने से परम प्रसन्न हुए । फिर विमलगिरिवर पर चढ़ने की तैयारियों बड़े उत्साह से होने लगीं ।
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66 हम संघवियों को भी जैसे तैसे यह वाणी सुन कर समरसिंह मन इन दो संघों का आना
प्रभात के समय में संघपति देसलशाह पादलिप्त ( पालीताणा ) स्थित श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा को सविनय वंदन कर सरोवर के तीर पर स्थित श्रीवीर भगवान् को प्रणाम कर पर्वताधिराज निकट पहुंचे । वहाँ श्रीनेमनाथ भगवान् को भेंट कर आचार्य श्री
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