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प्रतिष्टा ।
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देसलशाहने पांडवों की पांचों मूर्त्तियों तथा उन की माता कुंती की भी विविध द्रव्यों से
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पूजा
की ।
रायणवृक्ष के नीचे स्थित श्रीश्रदिजिन की पादुका का पूजन किया गया । सं. देसलशाहने नूतन निर्माण कराई हुई मयूरमूर्त्ति के दर्शन करते हुए मोती, सुवर्ण और आभूषणों आदि की वृष्टि की । श्रीआदीश्वर भगवान् के तीर्थपर उगी हुई रायणवृक्ष भी इसी प्रकार पुनीत दर्शनीय एवं पूजनीय है ऐसे विचार से देसलशाहने महोत्सव कर याचकों को वस्त्र आदि प्रदान किये । उस समय रायण भी आनंद - पीयूष की वर्षा कर रही थी । २२ तीर्थकरों को वंदन पूजन तथा दर्शन करते हुए सर्वत्र प्रदिक्षणा
देते हुए संघपति आदीश्वरजिन को पुनः भक्तिपूर्वक प्रणाम कर अपने श्रावासस्थान में जाकर प्रतिष्ठा की तैयारी करने में तत्पर हुए ।
संघपति देसलशाहने प्रतिष्टा कराने के महत्वशाली कार्य को सम्पादन करने के लिये हमारे चरितनायक को आदेश दिया। प्रदेश प्राप्त कर समरसिंहने अपने को परम अहोभागी समझा और उसी क्षण से आनन्दसागर में निमग्न होने लगे । सब से प्रथम उन्होंने १८ स्नात्र मयूर ( ? प्रचुर ) पिंड पकवान सहित मूल शत आदि प्रतिष्टा की उपयोगी सामग्री के सर्व पदार्थ तैयार. करवाकर रखे जिस से कि प्रतिष्ठा के अवसरपर किसी प्रकार का बिलम्ब न हो । प्रतिष्ठाविधि को अवलोकन करने की उत्कट