________________
समरसिंह
नायक सहनाशाह सहित बांई ओर उपस्थित थे । बांई ओर रहे हुए हमारे चरितनायकने जिनमज्जन कराया | सांगण और सामंत उभय भ्राता चामर लेकर जिन सम्मुख स्थित रहे । चक्षु रक्षा के निमित्त अरिष्ट ( अरेठा ) की माला उरस्थल में स्थापित कराई गई । कर्पूर, चंदन, फूल, अक्षत, धूपकालेयक, अगर और कस्तूरी आदि युक्त प्रतिष्टा योग्य वस्तुओं को तैयार कर रही, और गुरुने देसलशाह आदि श्रावकों के कंकरण रहित हाथ में मदनफल कौसुंभ सूत्र से बांधा ।
1
१९०
इस प्रकार प्रतिष्टा - सामग्री तैयार होने पर प्राचार्यवरने स्नात्रकारों द्वारा स्नात्र आरम्भ कराया । लग्न घटी को स्थापित कर एकाग्र चित्तवाले आचार्यश्रीने अधिवासना मुहूर्त को सिद्ध किया । जिन बिंब को उत्तम लाल वस्त्र से ढक कर श्रीखण्ड सुगंधित पदार्थों से पूज कर मंत्रों द्वारा सफल किया । हमारे चरितनायक गुरुकी पोषधशाला में पधारे और वहाँ से नंद्यावर्त के पट्टको सधवा स्त्री के मस्तक पर रख कर शीघ्र आदीश्वरजिन के चैत्य में पधारे और वह गाजेबाजे से मंडप वेदीपर रखा गया । आचार्य श्री सिद्धसूरि पट्टके समीप गये और विधियुक्त भालेखित सुयंत्रको कर्पूरसमूह से पूजा | सिद्धाचार्यजीने नंद्यावर्त मंडल बनाया और मंत्रवादियोंने कर्पूर आदिसे उसकी पूजा कर उसे दोष रहित किया । सारे आचायोंने नंद्यावर्त की पूजा की । पुनः वापस लौटकर सिद्धसूरिजी प्रादिजिन के पास जाकर लमसिद्ध करने को प्रस्तुत हुए । कौसुम्भ कंकण भी बांधे जाने लगे ।