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सातवाँ अध्याय
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प्रतिष्ठा के पश्चात् ।
सलशाहने स्वयं प्रार्थना कर मुनीश्वरों का मिष्टान्न आदि से सत्कार किया । सारे संघको सकुटुम्ब उत्तम सात्विक पदार्थोवाला भोजन दिया । चारण, गायक, भाट और याचकों को भी रुचि अनुसार भोजन कराया गया । दूर से आए हुए दीन, दुखी और दुस्थित लोगों के लिये प्रवारित सत्रागार कराया गया० ।
आचार्य, वाचनाचार्य और उपाध्याय आदि पदस्थ ५०० साधु इस महोत्सव में सम्मिलित थे । शाह सहजपाल महाराष्ट्र और तैलंग से जो सुन्दर और बारीक वस्त्र साथ लाए थे मुनिराजों को वे वस्त्र सं० देसलशाहने परम भक्ति सहित आनंदपूर्वक दिये । इस के अतिरिक्त अन्य दो सहस्र मुनियों को भी विविध ब दिये गये थे ।
हमारे चरितनायकने दानमंडप में बैठ कर सातसौ चारणों, तीन हजार बंदियों को तथा एक सहस्र से अधिक गवैयों को