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समरसिंह
आचार्यश्री की सलाह के अनुसार हमारे चरितनायकने अरिष्टनेमी के मन्दिर में एक सभा एकत्रित की जिस में प्राचार्यगण, संघ के मुख्य मुख्य श्रावक आदि उपस्थित थे। हमारे चरित
उन्होंने उत्तर दिया--" स्वामी ! क्या पूछते हो ? वह बुढ़िया सुलतान मौजदीन की माता है ।” मंत्रीश्वरने कहा बुढ़िया को अपने यहाँ और ठहराओ मैं लूटे हुए माल को सोध कर मंगवाने का प्रबंध अभी करता हूँ।
दो दिन पीछे मंत्रीश्वरने बुढ़िया की सारी चीज़ वापस पहुँचवादी । मंत्रीश्वरने बुढ़िया को अपने घर पर बुलवा कर विविध प्रातिथ्य कर पूछा, " क्या आप हज की यात्रा करना चाहती हैं ?” बुढ़ियाने कहा, “ हाँ" तब मंत्रीश्वरने उत्तर दिया कि आप थोड़ा बिलम्ब और करें । बुढ़िया मंत्रीश्वरका कथन मानकर चलने की प्रतिक्षा करने लगी इतने समय में आरस पत्थर का एक तोरण घड़ाकर तैयार करवा लिया गया । तोरण को जोड़ कर देख लिया जब फबता हुआ मालूम हुआ तो वापस टुकडों को अलग अलग करके रूईके पट देकर बांध लिया । हजकी यात्राके तीन मार्ग थे १ जलमार्ग ( समुद्र) २ ऊँटकी सवारी से जानेका मार्ग (रेगीस्तान ) ३ घोड़ेपर सवारी करके जाने का मार्ग ( पठार )
इसमें से जो मार्ग राजाओं के योग्य था वही अंतिम तय किया गया। रास्ते में राजाओं को भेट देने के लिये तरह तरह के अमूल्य और अनोखे पदार्थ भी साथ ले लिये गये । इस प्रकार मंत्रीश्वरने साथ जाकर बुढ़िया को हज तक पहुँचाया । मसजिद के द्वारपर तोरण सजवाया गया। वहाँ के राजा द्वारा इस तोरण की स्थापना कर मंत्रीश्वरने बहुतसा धन दानमें व्यय किया, इससे चारों और मंत्रीश्वर की भूरि भूरि प्रशंसा सुनाई देने लगी । बुढ़िया हजकर वापस लौटी । वह मंत्रीश्वर सहित खंभात आ पहुँची । मंत्रीधरने बुढ़िया का प्रवेश महोत्सव बड़े समारोह से कराया । स्वयं मंत्रीश्वरने