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उद्धार का फरमान ।
फलही मंत्रीश्वरने श्री संघ के अधिकार में रखी है अतएव तीर्थपति आदीश्वर भगवान की मूर्ति बनाने के सम्बन्ध में चतु
विध संघ की अनुमति लेना उचित होगा। अहो यह कैसी - दूरदर्शिता और कैसा संघ का मान !
यदि एक जिनविम्ब और भी इसी भाँति का तैयार करवा कर रखा जाय तो बहुत उत्तम हो । मुझे आशा है आप से अवश्य इस कार्य में सहायता मिलेगी। कारण कि आप मौज़दीन सुलतान के मित्र हैं। यदि आप प्रयत्न करेंगे तो सब कुछ बन सकेगा। इस कार्य का होना केवल आप की सहायता पर ही निर्भर है ।” पूनड़शाहने उत्तर दिया कि पीछा लौटकर इस सम्बन्धी विचार करूंगा । फिर उन दोनोंने वहाँ से रेवतगिरि (गिरनार ) की ओर पर्यटन कर श्री नेमिनाथ स्वामी को वंदन किया । यात्रा आनंदपूर्वक कर दोनों अपने नगरों की ओर वापस लौटे । पूनड़शाह नागपुर (नागौर) पहुँचा और वस्तुपाल स्तम्भतीर्थ (खंभात ) में राज्य कार्य करने लगे ।
उधर सुलतान मौजूदीन की वृद्धमाता हज करने के लिये रवाना हुई। वह जब खंभात में पहुँची तो एक नाविक ( खारवा-खलासी ) के यहाँ अतिथि की तरह आकर रही । यह समाचार जासूसों द्वारा तुरन्त मंत्री के कानों तक पहुँचे । मंत्रीने जासूसों को आज्ञा दी कि जब यह बुढ़िया जलमार्ग से जाने को तैयार हो तब मुझे फिर सूचित करना। जब वह बुढ़िया जाने लगी तो जासूसोंने तुरन्त मंत्रीश्वर वस्तुपाल के पास समाचार पहुँचाए । मंत्रीश्वरने अपने कोलियों को हुक्म दिया कि जाकर खलासियों के घर से अच्छी और कीमती वस्तुओं उठा लायो । कोली लोगोंने तदनुसार डाका डाला ।
__ खलासी लोग दौड़ कर मंत्री के पास पहुँच कर पुकारने लगे--" हमारे झोंपड़ों में एक बुढ़िया जो हज यात्रा के लिये जाती हुई ठहरी है उसे डाकुओंने लूट लिया है ।” मंत्रीश्वरने पूछा--" वह बुढ़िया कौन है ?"