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उद्धार का फरमान |
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किया कि गुरुकृपा से हमारे भाग्य का सतारा भी तेज है कि जिससे यह दूभर कार्य बिना परिश्रम के इतना सरल हो गया । प्रिय पुत्र समर ! तू वास्तव में पूर्ण सौभाग्यशाली और पूण्यवान है । इसके अतिरिक्त नगर के अन्य जन भी अति हर्षित हुए । सब को विदाकर हमारे चरितनायक पौषधालय में पधारे । वहाँ आचार्य श्री सिद्धसूरि विराजमान थे । समरसिंहने विधिपूर्वक वंदना कर फरमान प्राप्त होने की सूचना सूरिजी को की । यह समाचार सुन कर सूरिजी तथा अन्य श्रोता बहुत प्रसन्न हुए । सूरिजी को विशेष प्रसन्नता इस कारण हुई कि खान यद्यपि देवद्वेषी है. तथापि उसने समरसिंह के लिये इतनी उदारता प्रदर्शित की है । सूरिजीने इस घटना से यह निष्कर्ष निकाला कि हमारे भाग्य इस समय अभ्युदय की ओर हैं । सूरिजी प्रशंसायुक्त वाक्योंद्वारा सारगर्भित विवेचन कर समरसिंह को विशेष प्रोत्साहित किया । नगर में जहाँ तहाँ समरसिंह के बुद्धिचातुर्य की प्रशंसा होने लगी ।
समरसिंहने सूरिजी से सम्मति मांगी कि मंत्रीश्वर वस्तुपालने लाकर भोंयरे में एक अक्षतांग मम्माणशैल फलही रखी है १ मंत्रीश्वर वस्तुपालने मम्माण शैल फलही को इस प्रकार किया था :
प्राप्त
नागपुर (नागौर) नगर में पूनड़ नाम का श्रावक रहता था जो शाह देल्हा का पुत्र था । उस समय के यवन सम्राट् मौजदीन सुलतान की बीबी प्रेमकमला (कला) पूनड़ को अपने भाई की तरह समझती थी । पूनड़शाह राज्य की अश्व और गजों की सेनाओं के नायकों तथा राजाओं से आदर की दृष्टि से देखा जाता था । पूनड़शाहने वि. सं. १२७३ में बिंबेरपुर से श्री
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