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फलही ओर मूर्ति.
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करना भी भूल गये ? क्या ऐसा करना तुम्हें उचित लगा ! सुनो, समरसिंह के सौभाग्य से अब तुम्हारा कार्य सिद्ध हो जायगा । खान के अमुक हिस्से में से जिनबिम्बके लिये अनुपम और उपयुक्त फलही प्राप्त होगी । उन्ह लोगोंने अपनी भुल कबुल की और देवी का सम्मान किया । फिर तो देरी ही क्या थी " शासनदेवी की बानी फली । थोड़े ही परिश्रम और प्रयत्न से स्फटिक रत्नके सदृश एक निर्दोष फलही तुरन्त उपलब्ध हो गई ।
राणा महीपाल के चतुर मंत्री पाताशाहने यह समाचार समरसिंह के पास पाटण भेजे । देसलशाह इस समाचार को पाते ही आह्लादित हुए और समरसिंह को कहा कि जो व्यक्ति यह समाचार लाया है उसे दो उत्तम पोशाकें और सोनेकी जिह्वा दाँतों सहित बनाकर दो। हमारे चरित नायकजीने वैसा ही किया । पाटणनगर में एक महोत्सव मनाया गया जिसमें आचार्यगण, साधुसमुदाय और श्रावकवर्ग एकत्रित हुए । पहले संघ की पूजा -हुई फिर दान आदि देनेके पश्चात् देसलशाहने सविनय दोनों हाथ जोड़कर संघ के समक्ष प्रार्थना की, " संघके प्रताप और आशीर्वाद से फलही जिनबिंब बनाने के लिए दूषण रहित तैयार हो गई है । यदि संघ की आज्ञा हो तो इसी फलही से जिनबिंब बनवाऊँ अथवा उस फलदी से जो वस्तुपाल मंत्रीश्वरने प्राप्त की थी । " संघ की ओर से विचार कर उत्तर दिया गया कि " आरासण पाषाण की फलही जो हाल ही में आपने प्राप्त की है जिनबिंब बनवाने के काम में लाई जाय ।
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