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प्रतिष्टा ।
१८१ शिरोपाव दिया । हमारे चरितनायकने उस समय खान से कहा कि हमारा संघ श्रीशजय तीर्थ की यात्रार्थ जा रहा है । मार्ग में दुष्ट जनों के त्रास से संघ की रक्षा करने के लिये कतिपय जमादार भेजे जांय जो दुष्टों का निग्रह करें और संघ को किसी भी प्रकार की बाधा न होने दें । बस समरसिंह के कहनेमात्र ही की देर थी कि खानने तुरन्त दस वीर, धीर और मुख्य महामारों को साथ जाने के लिये हुक्म दिया । उन महामीरों तथा दूसरे पीछे रहे हुए लोगों को ले कर हमारे चरितनायक संघनायक के पास पधारे।
सुखासन में बैठे हुए देसलशाह देवालय के पथ-प्रदर्शक की तरह यात्रा कर रहे थे । सहजपाल के सुपुत्र सोमसिंह संघ के पीछे रक्षक की तरह जा रहे थे । हमारे चरित नायक भोजन और
आच्छादन प्रदान करने की व्यवस्था कर संघ के श्रावकों की भावश्यक्ताओं की पूर्ती करने में संलग्न थे और सेल्लार राजपुत्र सछत्र सशस्त्र अनेक भूषणों से विभूषित अश्वारूढ़ हो कर हमारे चरित नायक के साथ संघ की रक्षा चहुं ओर से करते थे। संघ का पर्यटन संगीत और वाजिंत्र की ध्वनि सहित हो रहा था। रास्ते में कई गाँव आते थे । वहाँ के अधिपति ठाकुर आदि दूध और दही की भेंट लेकर समरसिंह से मिलते थे । गाँव गाँव के संघ समरसिंह की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए संघवी की चरणरजसे अपने आप को पवित्र कर रहे थे । देसलशाहने एक योजना यह भी की थी कि नित्य यह घोषणा की जाती थी कि " भूखे को