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'फनही और मूर्ति.
आदेश मिलजाने के कारण देसलशाह और हमारे चरितनायक बहुत प्रसन्नचित्त हुए । उनका उत्साह परिवर्द्धित हुआ। राणा के नगर को अधिक धन और मनुष्य और भेजे गये । मंत्री पाताशाहने भी शिला के निकलने पर सूत्रधारों को सुवर्ण - भूषण और बहुमूल्य वस्त्र प्रदान किये थे। यह समाचार सुनकर स्वयं राणा महीपालदेव भी आरासण पाषाण की खानपर पहुंचे
और खान से निकली हुई फलही को प्रत्यक्ष जिनबिंब समझकर कालेच, कस्तूरी, घनसार, कर्पूर और पुष्पों से श्रद्धा और भक्तिसहित विधिपूर्वक पूजा की । राणाने फलही की पूजा के उपलक्ष में बहुत सा द्रव्य दान में दिया । इस प्रकार यह उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया।
सूत्रधारोंने प्रस्तुत फलही को पर्वतपर से नीचे बहुत यत्नपूर्वक उतारी । वह शिला आरासण नगर में महोत्सवद्वारा प्रविष्ट की गई। श्रारासण ग्राम के श्रावक भी फलही की अगवानी करने के लिए आए और उन्होंने श्रद्धासहित फूल और कर्पूर आदि सुगंधित द्रव्यों से पूजा की । उस समय गीत, गायन, बाजों और हर्ष का चारों ओर कोलाहल सुनाई देता था । ऐसी ध्वनि सुननेवाले वास्तव में परम सौभाग्यशाली थे । वहाँ स राणाजी महीपालदेव अपने चतुरमंत्री पाताशाह को तत्सम्बन्धी उपयुक्त सूचनाएँ देकर अपने नगर की ओर पधारे ।
इस शिला को पहाड़ी भूमि में से लाने के लिए मंत्रीश्वरने