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पंचम अध्याय.
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फलही और मूर्ति । स समय आरासणखान का अधिकारी राणा महीपालदेव था जो त्रिसंगमपुर में राज्य करता था । ग्रंथको उल्लेख करते हैं-" यह महीपाल राणा जन्म ही से निरामिष भोजी था तथा
मदिरा का सेवन भी नहीं करता था। इस के अतिरिक्त वह दूसरों को भी मांस और मदिरा का पान नहीं करने देता था । वह त्रस जीवों की हिंसा भी नहीं करता था। उस के राज्य में शिकारियों को कोई अधिकार नहीं दिया जाना था। छोटे बकरे या भैंसे को भी कोई नहीं मार सकता था। जूआ या खेल खेलते हुए भी कोई “ मारता हूँ " ऐसा उच्चारण की आज्ञा मांगी तो बादशाहने खुशी से पत्थर लेने दिया ।” परन्तु यह ठीक नहीं । समराशाहने तो महीपाल नरेश के अधिकारवाली आरासण खान से पाषाण की फलही मंगवाई थी-ऐसा उल्लेख रास-या प्रबंध में स्पष्ट है तथा इसी रास-प्रबंध की टिप्पणी में लिखा हुमा हैं." मम्माण कहाँपर है, इस का पता नहीं लगा।" किन्तु जहां तक हमारा बिचार है मम्माण पत्थर की खान नागपुर (नागोर ) के पास थी क्योंकि इस बात का उल्लेख प्रबंध कोष आदि ग्रंथों में देखा जाता है।
नोट-पवित्र तिर्थाधिराज के उद्धार कर्ता श्रेष्ठि कुलभूषण हमारे मरूभूमि के एक वीर पुरुष है । और मूखनायक बादोश्वर भगवान की मूर्ति भी हमारे मरूभूमि
उत्तम फलही से बनी हुई है । अतः इस मौरव से मारवाड़ प्रान्त का सर क्यों न उन्नत रहे।