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उपकेशगच्छ-परिचय । बाते करवाई गई-गुजरातीयों की एक लांग खुलवाई और भेसे पर पानी लाद कर मगवाना बंध करवाया।
तदन्तर इसी गच्छ में महान् प्रभाविक कक्कसूरि नामक आचार्य हुए । इनका दूसरा नाम कुंकुदाचार्य भी थे। इन्होंने १२ वर्ष तक छट्ठ छह तपस्या के पश्चात पारणे पारणे आयंबिल किया । बड़े बड़े राजा महाराजा आपके चरणकमलों में उपस्थित रहते थे | आप राज्यगुरु कहलाते थे । आप के शासनकाल में सहस्रों साधु-साध्वियों तथा क्रोड़ों श्रावक विद्यमान थे। आपने अपने आत्मबलद्वारा अनेकानेक लोगों को त्यागी और जैनधर्मानुरागी बनाया । श्वतःएव आप की विद्वता का प्रभाव चहुंओर प्रसरा हुआ था।
यह समय परिवर्तन का था । श्रमण-संघ में क्रिया की शिथिलता छा रही थी। प्रत्येक गच्छ में क्रिया के उद्धार की
आवश्यक्ता अनिवार्य प्रतीत होती थी। और हुआ भी ऐसा ही । प्रायः इसी शताब्दी में गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ है । आचार्य श्री अपने गच्छ के क्रिया-शिथिल साधुओं को मृदु और मंजु उपदेश द्वारा पुनः उचित पथ पर ले आते थे अथवा यदि वह साधु उचित कर्त्तव्य का पालन न करता तो उसे गच्छ से विलग कर देते थे। जो साधु इन की आज्ञानुसार क्रिया करते थे वे कुकुन्दाचार्य की संतान कहलाते थे ।
२ दखिये उपकेशगच्छ-पट्टावली ( जैन० सा. सं. पत्र में मुद्रित)