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उपकेशमच्छ-परिचय । मन्तिम पद में 'पढम हवई मंगलं' तथा दो वन्दन के स्थान छ वन्दन लिखने से वह सर्वमान्य नहीं हुमा । यद्यपि उस समय बहुत से आचार्य ' पढमं होई मङ्गलं' माननेवाले थे तथापि हेमचन्द्राचार्य के एक शिष्य-गुणचन्द्रने एक षडयंत्र रचा । उसने राजा कुमारपाल के नाम से एक पत्र लिख कर सर्व गच्छवालों के पास आदमी भेजा कि योग्य शास्त्र को अनुमोदन करनेवाले इस पर अपने हस्ताक्षर करदें। सब आचार्योने कह दिया कि हमारे नायक उपकेश गच्छाचार्य श्री ककसूरि हैं यदि वे इसे स्वीकार कर लेंगे तो हम भी अवश्य स्वीकार कर लेंगे। पत्र ले कर भावमी उपकेशगच्छ के उपाश्रय में ही रहा था कि इतने में सारे प्राचार्य मिल कर ककसूरि के समक्ष उपस्थित हुए । पत्र ले कर वह आदमी भी ककसूरिजी के पास आया । मापने पत्र १ तदा श्री कुमारपाल भूपाल पालयन महीं;
आस्ते श्रीहेमसूरीणं पदाम्बुज मधुव्रतः ॥ ४३५ ॥ तस्याभ्यर्थनया योगशास्त्र सूत्रमसूत्रयन् । श्रीहेमसूरयो राजगुरवो गुरुसत्तमाः ॥ ४३६ ॥ षट् छ (व)दनानि तन्मध्ये तथा ' हवई मंगलं' स्थापया मासुराचार्याः सुराचार्य समप्रभाः ॥ ४३७ ।। तेषां गणी गुणचन्द्रः स्वकर्षेण गर्षितः चतुरशीति गच्छानां द्विच्छंदन कदापिनां ॥ ४३८ ॥ सूरीणांमुपाश्रयेषु भट्टपुत्रानरे शितुः । राजादेशकरान्प्रषी दिहोक्तं मन्यता मिति ॥ ४३९ ॥ (ना० नं० उ०),