________________
चतुर्थ अध्याय.
SC
शत्रुञ्जय तीर्थ के उद्धार का फरमान.
-
-
-
विक्रम की चौदहवीं शताब्दि का जिक्र है कि गुर्जर
प्रान्त में अणहिलपुर-पट्टण नामक नगर बड़ी म उन्नत अवस्था में था। यह नगर वि. सं. ८०२
की अक्षय तृतीया को जैनाचार्य श्री शीलगुण सूरि के परमोपासक बनराज चाँवड़ाने आबाद किया था। तबसे वह नगर चाँवड़ा वंश के ७ राजाओं के आधिपत्य में १६७ वर्ष पर्यत रहा ! तत्पश्चात् चौलुक्य वंशीय नरेशों के आधिपत्य में रहा । इस वंश वालोंने भी इस नगर की खूब उन्नति की । पट्टण नगरी स्वर्ग के सदृश गिनी जाने लगी । यह नगर धन धान्य से समृद्ध व्यापार का बड़ा भारी केन्द्र था । इस नगरी में चौरासी चौहट्टे, बावन बाजार और निनानवे मण्डियों के अतिरिक्त अनेकानेक बारा, बगीचे, कूए--तालाब, पथिकाश्रम और दानशालाएँ
१०