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श्रेष्ठिगोत्र और समरसिंह।
आचार्यश्रीसे भाशाधरने कहा कि गुरुवर्य ! कृपया भाप मुझे उपकेशगच्छ का पिछला वर्णन तो सुनाइये । मुझे सुनने की पूर्ण उत्कंठा है। इस पर आचार्यश्रीने उपकेशगच्छ की स्थिति का संक्षिप्त इतिहास अपने मुखारविंदसे सुनाया । भगवान् पार्श्वनाथ से लगाकर अपनी मौजूदगी तकका क्रमबद्ध सुनाया गया' वर्णन आचार्यश्रीने आशाधरको संक्षेपमें ही बताया, जो आगे तीसरे अध्यायमें लिखा गया है। आशाधरने गच्छ के अतीत गोरवको सुनकर परम प्रसन्नता प्रकट की तथा वह उस दिनसे विशेष तौरसे गच्छ प्रेमी होकर गच्छोन्नति की ओर अधिक लक्ष्य देनेलगा।
प्राचार्यश्री देवगुप्त सूरि जब ८४ वर्ष के हुए तो उन्होंने एक दिन देवी का स्मरण किया । देवी सचाईका प्रकट हुई और बोली कि मापका आयुष्य अब केवल ३३ दिन का ही अवशेष है अतः बताइये आप आचार्य पद पर किसे बिगना चाहते हैं ? भाचार्यश्रीने कहा कि मुझे तो कोई ऐसा मुनि दृष्टिगोचर नहीं होता जो इस उत्तरदायित्व पूर्ण पद पर आरूढ़ होने के लिये सर्वथा योग्य हो । बहुत अच्छा हो यदि आप ही स्वयं बता दें। तब देवीने कहा कि मेरे ख्याल से तो मुनि बालचन्द्र, सूरि पद के सर्वथा योग्य है । इतना कहकर देवी तो अदृश्य हो गई। प्रातः काल होनेपर आचार्यश्रीने आशाधर को बुलाया और रात का सर्व वृतान्त कह सुनाया। भाशाधर तो इस अवसर की प्रतीक्षा कर ही रहा था । उसने महोत्सव के लिये भरपूर तैयारी की ।