________________
समरसिंह। काल में विदेशी नामक एक प्रचारक आचार्यने उज्जेन नगरीके महाराजा जयसेन को उनकी रानी अनंगसुंदरी और उनके राजकुँअर केशी कुंअर को दीक्षित किया था । चौथे पट्टपर केशीश्रमणाचार्य महान प्रभाविक हुए । इन्होंने केवल कई राजा महाराजाभोंको ही जैन धर्म में दीक्षित किया हो ऐसा नहीं वरन् कट्टर नास्तिक नरेश प्रदेशी को भी अधोगतिसे युक्तियों द्वारा बचाकर
आपने उसे सच्चा जैनी बनाकर वास्तव में अद्भुत और अनुकरणीय कार्य कर दिखाया । आप ही के शासनकाल में वर्तमान शासन, जो भगवान् महावीर स्वामी का है, प्रवृत हुश्रा था । आपने सामयिक सुधार कर जिन शासन को सुदृढ़ और सुनियंत्रण द्वारा व्यवस्थित किया। इसी व्यवस्थित शासन में भगवान् श्री महावीर स्वामीने अपनी बुलन्द आवाजसे भारतवर्षके कोने कोने में " अहिंसा परमोधर्मः " के संदेश को पहुँचाया । ऐतिहासिक अनुसंधानने यह साबित कर दिया है कि उस समय महावीर स्वामी के झंडेके नीचे ४० क्रोड़ जनता जैन धर्म का पालन कर निज आत्महित साधन में संलग्न थी।
आचार्य श्री केशीश्रमण के पट्टधर आचार्य श्री स्वयंप्रभसूरि हुए | मापके उद्योगसे जैन धर्म का विशेष प्रचार हुआ । अनेक आफतों को धैर्यपूर्वक सहन करते हुए श्राप वाममार्गियों के केन्द्र श्रीमालनगर में पहुँचे । वहाँ पहुँचकर आपने यज्ञ में होमे जानेवाले सवा लाख मूक पशुओं को अभय-दान दिलवाया । उस
१ देखिये जैनजाति-महोदय तीसरा प्रकरण पृष्ठ १६ से ४० तक