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समरसिंह
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एक बार आशाधरने अपनी जन्मपत्रिका आचार्य श्री देवगुप्तसूरि के समक्ष रखी और यह प्रश्न किया, " गुरुवर्य ! क्या म भी कभी फिर धनवान होऊंगा ? " प्राचीन समय में आचार्य गण भी लौकिक विद्याओं में पूर्ण विज्ञ होते थे तथा संघ पर संकट आने पर उनका उचित उपयोग भी किया करते थे एवं उस समय के श्रावक भी देव गुरु और धर्म में पूर्ण श्रद्धा रखने वाले होते थे । आचार्यश्रीने भविष्य में लाभ जानकर आशाधर को सम्बोधित करते हुए कहा - " भद्र ! तू अल्प समय में ही बड़ा धनी होगा । यदि उस धन का धार्मिक कार्यों में व्यय उदारतापूर्वक करेगा तो तेरा धन दिन ब दिन बढ़ेगा अन्यथा पुन: वही अवस्था होगी जो इस समय है । इस बातका पूरा ख्याल रखना । " आशाधरने स्वीकार किया कि आपने जो हिदायत की है उसका पूर्णतया पालन करूंगा । तत्पश्चात् वंदना करके वह अपने घर गया । उसने उसी समय यह दृढ़ प्रतिज्ञा की- " यदि मुझे द्रव्य प्राप्त होगा तो सबका सब द्रव्य धर्म के कायों में ही लगाऊंगा-और यह कहते हुए हमें अति हर्ष है कि उसने वैसा ही करके अपने प्रणको पूर्णतया निबाहा भी !
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एक बार आशाधर जब आचार्यश्री देवगुप्तसूरि के वंदनार्थ पौषधशाला में गया तो उस समय अन्य मुनि तो आहार आदि लेने के लिये बाहर गये हुए थे अतः आचार्यश्री ध्यानमग्न थे । एक सात वर्षकी कन्या भी उस समय पौषधशाला में आई हुई थी । इस सुअवसर को आया हुआ जान कर सच्चाईका देवीने उस