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प्रेष्टिगोत्र और समरसिंह।
राजाजीने सेठ साहब का वस्त्राभूषण आदि से अच्छी तरह से • स्वागत किया।
मंत्रीश्वर को राजाजी की ओर से आज्ञा हुई कि पोष्टवर्य के लिये अनुकूल भवन नगर में दिलवा दीजिये ताकि भाज ही से ये अपने कुटुम्बवालों को उद्यान में से नगर में ले आवें तथा इस के अतिरिक्त और भी सब आवश्यक सामग्री जुटा दो ताकि सेठजी को किसी भी प्रकार की असुविधा न रहे।
राजा से विदा होकर जब बेसट राजद्वारपर पहुंचे तो वहाँ नगर के महाजन वंश के मुख्य मुख्य अग्रेसरों से मिले । सबने सेठजी का हृदय से स्वागत किया। भगवान की रथयात्रा का प्रसंग छिड़ा तो आपने सब प्रस्तावों का अनुमोदन किया तथा उत्सव में सम्मिलित होने का अभिवचन भी दिया और उसका पालन भी किया। बेसट श्रेष्टिवर्य कुटुम्ब सहित नगर में रहने लगे। जो मान और प्रतिष्ठा श्रापको उपकेशपुर में प्राप्त थी उससे भी अधिक आदर आपने इस नगर में थोड़े ही समय में अपने अनुपम गुणों द्वारा शीघ्र ही प्राप्त कर लिया। श्रेष्टिवर्य बड़े उदार थे । आपके द्वारपर आये हुए याचक कभी रिक्त हाथ नहीं लौटते थे । सेठजीने सबके हृदय में स्थान पा लिया । क्यों न हो भाग्यशाली भद्र पुरुषों को सब ठौर सफलता प्राप्त हो ही जाती है।
श्रेष्टिवर्य श्रीयुत बेसट सकुटुम्ब सुखपूर्वक किराटकूपनगर में रहने लगे । इनकी देवगुरु और धर्मपर अटूट श्रद्धा और दृढ़