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श्रेष्टिगोत्र और समरसिंह । था किन्तु वह परम गुणी होने के कारण सहस्रों के बराबर है। कहा भी है कि
वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्ख शतान्यपि । एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च तारागणोऽपि च ।
बेसट अपनी अंतिम समाधि की क्रिया कर सात क्षेत्रों में अपनी सारी सम्पत्ति अर्पण कर गृहकार्यों का भार वर देव को सोंप अनशनपूर्वक स्वर्गधाम को सिधाये ।
सुयोग्य पुत्र वरदेवने भी अपने सदाचरण द्वारा अपन पिता की कीर्ति को द्विगुणित किया। उसकी भी श्रद्धा देवगुरु धर्म और शासन के प्रति वैसी ही थी। साधर्मियों और जन साधारण की ओर भी तादृशी सहानुभूति और वात्सल्यता विद्यमान थी। राज्य कार्य में तो उसका हस्तक्षेप था ही परन्तु व्यापार आदि में उसने और भी अधिक वृद्धि कर दिखाई ।
___ वरदेव के एक पुत्र हुआ जिसका नाम जिनदेव था। जो जिनेश्वर के चरणों में अविरल भक्ति रखनेवाला तथा प्रखर बुद्धिमान था । वरदेवने भी अपना द्रव्य सातों क्षेत्रों में अपर्ण कर घर का भार जिनदेव को सुपूर्द कर अनशनपूर्वक स्वर्गधाम प्राप्त किया।
जिनदेव का पुत्र नागेन्द्र तो साक्षात् सहस्र नाग की तरह जगत का उद्धार करनेवाला अवतरित हुआ था। उसे विपुल लक्ष्मी और अक्षय कीर्ति प्राप्त हुई थी। इसके द्वारपर जो