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श्रेष्ठिगोत्र और समरसिंह।
आजड़शाहने अपने कर्त्तव्य को पूर्णरूप से निबाहा । इनके द्वारा अनेक शुभ कार्य सम्पादित हुए । उपकेशगच्छाश्रित श्रीपार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर में आपने गुरु देवगुप्तसूरि द्वारा २१ अंगुल परिमाण श्री आदीश्वर भगवान की मूर्ति, मूलनायक जी तथा अन्य १७० प्रतिमाओं की अंजनशलाका तथा प्रतिष्टा करवाई। इसके अतिरिक्त आजड़शाहने एक दूसरा नया मन्दिर बनवाकरके उस में भी कई मूर्तियों प्रतिष्ठित करवाई तथा
आजड़शाहने एक रङ्गमण्डप भी बनवाया था। इस प्रकार वे अपने जीवन को शानन्दपूर्वक निर्विघ्नतया बिता रहे थे।
आजड़शाह के एक पुत्ररत्न हुआ जिसका नाम ' गोसल' रखा गया । ' गोसल' की शिक्षा का भार अनुभवी और योग्य अध्यापकों को दिया गया। थोड़े ही समय में परिश्रमी होने के कारण गोसलने सर्व कलाओं में निपुणता प्राप्त कर ली । जब वह सम्यक् प्रकार से इष्ट शिक्षा को ग्रहण कर चुका तो युवावस्था में अवतरित होते ही उस का विवाह एक शिक्षिता गुणवती नामक रूपगुणसम्पन्न बालिका से किया गया। जिस प्रकार गुणवती यथा नाम तथा गुणी थी उसी प्रकार वह गृहस्थी के सर्व कार्यों को सम्पादन करने में भी प्रवीण थी। गुणवती के धर्मानुराग तथा उदारता के स्वभाव से गोसल का गाहस्र्थ्य जीवन सुखी १ एकविंशत्यगुलाङ्गं नाभेयं मलनायकम् । तत्परिकरबिम्बानां सप्तत्याऽभ्यधिकं शतम् ॥ ८९ ॥ विधाप्य श्रीमदुपकेशगच्छीये पार्श्वमन्दिरे । श्रीदेवगुप्तसूरिभ्यः प्रतिष्ठाण्य यथाविधि ॥ ९०॥ ( ना० नं० )