________________
समरसिंह।
प्रसन्नतापूर्वक यहां बसिये ।। मकान और विविध आवश्यक सामग्री भी यहां आपको हमारी ओर से दे दी जायगी।"
इस प्रकार परिचय के साथ ही अगाढ़ प्रीति बढ़ गई । उसी समय राज सभा में दरबानने प्रविष्ट होकर गजाजी से निवेदन किया कि आज इस नगर के महाजनों के सारे मुखिया मिलकर आप से कुछ निवेदन करने के लिये बाहर उपस्थित हुए हैं । मैंने उनसे पूछा कि क्या कार्य है तो उन्होंने बताया कि इस नगर में ऋषभदेव जिनेश्वर का जो विशाल मन्दिर है जिसमें ५२ दहेरियों है। मूलनायकजी की पूजा और भारती के साथ साथ सब दहेरियों में भी पूजा व आरती की जाती है । वर्ष भर में जितने दिन होते हैं उतने ही दिन अर्थात् ३६० दिन अठाई महोत्सव ( पूजा ) के ठाठ लगे रहते हैं । शिखर के चारों ओर जिह्वा बाहर निकालते हुए सिंहों के चित्र ऐसा दृश्य प्रदर्शित करते हैं मानों वे वाममार्गियों के अत्याचारों को भक्षण करने की चेष्टा कर रहे हैं । मूल मन्दिरजी के सम्मुख एक विशाल सुन्दर रमणीय मण्डप ऐसी अनोखी शोभा देता है मानों भव्य पुरुषों के लिये पुण्यलक्ष्मी वरने का स्वयंवर का मण्डप हो। और उस मण्डप के ऊपर के सुवर्ण कलश तो और भी अलौकिक शोभा दिखा रहे हैं। इस मन्दिर में भक्तिभाव से नित्य पूजा
१ यदस्ति देव ! ऋषभस्वामि चैत्यमिहोतमम् । द्वाभ्यां पञ्चाश देवकुलिकाभिर्वि भूषितम् ॥ ६५ ॥