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श्रेष्टिगोत्र और समरसिंह । श्रेष्ठि नामक गोत्र में बेसट नाम के महा प्रतापी पुरुष हुए । ये उपकेशपुर के निवासी धनी एवं बड़े धर्मात्मा थे । इनका सुयश चारों ओर फैला हुआ था। इनके पास इतना द्रव्य था कि अनेक याचकों को दे दे कर उन्होंने उनका दारिद्र सदैव के लिये दूर कर दिया था । एक आदर्श गृहस्थी के सब गुण इनमें प्रकृति से ही विद्यमान थे । ये अपनी बात के धनी थे । एक बार उपकेशपुर के मुख्य २ पुरुषों से आपकी अनबन हो गई। वेमनस्य को बढ़ता हुआ देख कर आपने उस नगर को ही छोड़ने का विचार कर लिया। अपने सारे ऐश्वर्य सहित आप चलने को प्रस्तुत हुए तो प्रारम्भ ही में ऐसे ऐसे शुभ शकुन हुए कि जिस से
आप को प्रतीत होने लगा कि यह प्रस्थान बहुत सुफल प्रगट करेगा। भाग्यशाली पुरुषों के लिये ऋद्धि और सिद्धि सर्पदा हाथ जोड़े उपस्थित रहती ही है। उनके लिये देश और विदेश सब सुखकर हैं । जहां वे जाते हैं सदा आदर सत्कार पाते हैं । श्रेष्ठि गोत्रज बेसट चलते हुए क्रमशः किराटकूपनगर के समीप पहुंचे।
किराटपुर नगर की शोभा का अनुपम वर्णन प्रबन्धकार इस प्रकार करते हैं कि वह नगर जिनालयों की पताकाओं से १ तत्र गोत्रेऽभवद भूरि भाग्य सम्पन्न वैभवः ।
श्रेष्टि 'बेसट' इत्याख्या विख्यातः क्षितिमण्डले ॥ ३२ ॥ २ अविलम्बेः प्रयाणैः स गच्छन्नच्छाशयः पथि ।
किराट कूप नगरं प्राप पापविवर्जितः ॥ ४३ ।। ३ सुर सद्म पताकाभिश्वसन्तीमिश्चतुर्दिशम् । पथिका नाज्ञ मतीव यत्पुरं सर्वदिगातान् ॥